श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
कंस वध के पश्चात् कृष्ण सीधे अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव जी के पास गये। श्रीकृष्ण को देख वे अत्यंत प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने उनकी बेड़ियाँ तोड़ी और दु:ख दूर किया। श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने माता-पिता को चरण स्पर्श किया।
देवकी पिराट्टि श्रीकृष्ण से बहुत समय के अलगाव के बारे में विचार कर बहुत दु:खी हुईं। श्रीकृष्ण ने दु:ख दूर करने के लिए उन्हें बहुत मातृ स्नेह दर्शाया। एक लीला जो गुरु परम्परा प्रभावम् में वर्णित है, जैसे पराशर भट्टर् स्वामी जी ने नञ्जीयर् स्वामी जी को बताया कि मातृ स्नेह के वशीभूत हो देवकी पिराट्टि के स्तनों में दुग्ध उतर आया और श्रीकृष्ण ने उसे स्वीकार किया।
श्रीकृष्ण ने कैसे अपने माता-पिता के दु:खों का निवारण किया इस लीला का आऴ्वारों ने कई पासुरों में वर्णित कर आनन्द प्राप्त किया। तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने पॆरिय तिरुमोऴि में वर्णन किया, “तन्दै कालिल् पॆरु विङ्गु ताळ् अविऴ नळ्ळिरुट्कण वन्दे एन्दै पॆरुमानार्” (मेरे सर्वोच्च स्वामी अंधेरी रात में अपने पिता के पैरों की बेड़ियों को भङ्ग करने आए) और “तन्दै कालिल् विलङ्गऱ वन्दु तोन्ऱिय तोन्ऱाल्” (परम स्वामी जिन्होंने अपने पिता की बेड़ियों को तोड़ने के लिए अवतार)। कुलशेखर आऴ्वार् ने अपने पेरुमाळ् तिरुमोऴि में, “आलैनीळ् करुम्बु” दशक में देवकी पिराट्टि के हृदय भाव में गाते हैं जहाँ वह श्रीकृष्ण के बचपन की लीलाओं को स्मरण कर विलाप कर रही हैं।
सार:-
- इस संसार में भले ही कोई भगवान के माता-पिता ही क्यों न हो वे दु:खों से नहीं बच सकते परन्तु इसके लिए भगवान ही दु:खों को दूर करते हैं।
- भगवान को अपने भक्तों की सहायता करने में भले ही देरी हो जाए परन्तु निश्चित समय पर निश्चित रूप से उनकी रक्षा अवश्य करेंगे।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/08/krishna-leela-31-english/
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