श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< सान्दीपनि मुनि के गुरुकुल में वास करना
गुरुकुल वास की अवधि पूर्ण करने के पश्चात्, श्रीकृष्ण मथुरा में रहे। कंस वध के पश्चात् उसकी दो पत्नियाँ जो कि जरासन्ध की पुत्रियाँ थीं उन्होंने अपने पिता के पास जाकर अपना भारी दु:ख बताया। उसने क्रोध में प्रतिज्ञा ली कि वह श्रीकृष्ण की हत्या कर देगा। वह विशाल सेना को एकत्र कर मथुरा पहुँचा। श्रीकृष्ण और बलराम अपनी सेना को एकत्र कर मथुरा से बाहर निकल कर जरासन्ध से युद्ध किया। उन्होंने जरासन्ध की सेना का विनाश किया और बलराम ने जरासन्ध को बन्दी बनाया। परन्तु श्रीकृष्ण ने कहा, “आइए अब जरासन्ध को मुक्त करें। पृथ्वी पर अवतरित होने का उद्देश्य उसका भार कम करना है। यदि इसे मुक्ति दे दी तो वह पुनः सारे दष्ट शक्ति को इकठ्ठा कर सामने आएगा, उस समय हम सब का एक साथ विनाश कर सकते हैं।” बलराम ने उसे मुक्त किया। इस प्रकार जरासन्ध सत्रह बार श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया और पराजित हुआ और वहाँ से भाग गया।
कृष्ण ने आनेवाले भयानकता को जानकर अन्यत्र पलायन करने का निश्चय किया। उन्होंने विश्वकर्मा को पश्चिम दिशा में समुद्र तट पर द्वारका नगरी का निर्माण करने का आदेश दिया। वे मथुरा के सभी जन को ले आए और द्वारका में निवास स्थान दिया।
इस अन्तराल में जरासन्ध कृष्ण को पराजित करने की युक्ति सोचने लगा। उसी समय एक शक्तिशाली और विशाल सेना का मुखिया कालयवन नामक राजा उपस्थित हुआ। जरासन्ध ने कृष्ण को पराजित करने के लिए कालयवन की सहायता माँगी और अपनी सेना के साथ मथुरा भेज दिया। कालयवन ने मथुरा पहुँचते ही श्रीकृष्ण को एक दिव्य कमल माला पहने हुए बाहर आते हुए देखा। कालयवन को देख श्रीकृष्ण भागने लगे। कालयवन श्रीकृष्ण का पीछा करते हुए एक पर्वत की गुफा में प्रवेश कर गया।
इस गुफा में इक्ष्वाकुवंशीय मुचुकुन्द नामक राजा, जो मांदाता के पुत्र थे, बहुत समय से वहाँ सो रहे थे। वे बहुत समय से अपने परिवार से दूर रहें, और देवताओं को युद्ध में सहायता की, देवताओं ने उन्हें वरदान दिया। मुचुकुन्द मोक्ष चाहते थे तो देवताओं ने कहा, “हम मोक्ष नहीं दे सकते। पहले आप पूर्ण विश्राम करें।” वे इस गुफा में आकर सो गए।
उस अन्धकारमयी गुफा में श्रीकृष्ण प्रवेश कर एक कोने में चुपचाप खड़े हो गए। कालयवन पीछा करते हुए गुफा में आ गया और कालयवन को सोते देख विचार करने लगा कि कृष्ण सोने का नाटक कर रहे हैं, और उस पर अपने पैर से प्रहार किया। मुचुकुन्द निद्रा से जग गया और क्रोध से घूरने लगा। उस दृष्टि के तेज से कालयवन भस्म हो गया।
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण बाहर आए और मुचुकुन्द उनके दर्शन कर, उनके सौन्दर्य से मन्त्रमुग्ध हो गया। श्रीकृष्ण ने उसे अपना वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया। वह आनन्दपूर्वक मोक्ष प्राप्ति की सविनय प्रार्थना करने लगा। श्रीकृष्ण ने कहा, “अगले जन्म में तुम मुझे प्राप्त करोगे।”
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण कालयवन की सेना का विनाश कर मथुरा लौट आए। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने जरासन्ध और कालयवन के माध्यम से बुरी शक्तियों का विनाश किया और भूमि का भार समाप्त किया।
सार:
- भगवान दुष्टों का नाश करने के लिए विभिन्न युक्तियों का उपयोग करते हैं।
- वह उनके प्रति पूर्ण समर्पित महानुभावों का मङ्गल करते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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