श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< द्वारका निर्माण, मुचुकुन्द को आशीर्वाद देना
श्रीकृष्ण द्वारा कालयवन का सेना सहित विनाश हो गया तत्पश्चात् जरासन्ध एक विशाल सेना सहित युद्ध करने पहुंचा। श्रीकृष्ण ने उस समय उसका वध करना उचित न समझते हुए वहां से बलराम के साथ द्वारका चले गये, और जरासन्ध को खोज न सकने से मृत समझकर अपने राज्य को लौट गया।
तभी विदर्भ के राजा भीष्मक ने अपनी बेटी रुक्मिणी के विवाह की व्यवस्था करने का निर्णय लिया। उनके पुत्र रुक्मी की इच्छा रुक्मिणी का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से करने की थी। परन्तु श्रीमहालक्ष्मी का पूर्णावतार रुक्मिणीप्पिराट्टि हैं, जब-जब भगवान इस संसार में अवतरित होते हैं तब वे उनके साथ होती हैं। श्रीकृष्ण का उनको भली-भांति ज्ञान था और वह उनसे ही विवाह करना चाहती थी। केवल रुक्मी के कारण शिशुपाल से विवाह की व्यवस्था की गई। निश्चित तिथि से पहले ही विवाह का उत्सव आरम्भ हो गया।
रुक्मिणी ने व्याकुलता से एक ब्राह्मण को श्रीकृष्ण के पास दूत बनकर जाने का अनुरोध किया । श्रीकृष्ण को एक पत्र सौंपने को कहा। शीघ्र द्वारका को प्रस्थान के लिए कहा। ब्राह्मण ने भी शीघ्र द्वारका पहुंच कर श्रीकृष्ण को पत्र सौंप दिया।उसने रुक्मिणीप्पिराट्टि के द्वारा विवाह से एक दिन पहले अपनी टोली के साथ दुर्गा मन्दिर जाने की सूचना भी दी और श्रीकृष्ण को उसी समय रुक्मिणीप्पिराट्टि को वहां से ले जाने का अनुरोध किया।
श्रीकृष्ण और बलराम व अन्य यादव तत्परता से रथ पर चढ़कर नगर की सीमा तक पहुंचे। उसी समय रुक्मिणीप्पिराट्टि उस मन्दिर जाने के लिए तैयारी कर रही थी। उस मन्दिर के पास पहुंच श्रीकृष्ण ने विजय घोषणा करते हुए पाञ्चजन्य शंख बजाया। रुक्मिणीप्पिराट्टि ने श्रीकृष्ण के आगमन को समझकर आनन्दित होकर मन्दिर के पास पहुंची और श्रीकृष्ण के रथ पर चढ़ गई। श्रीकृष्ण ने उस रथ को तीव्र गति से चलाना आरम्भ किया। रुक्मी, शिशुपाल और जरासन्ध आदि ने श्रीकृष्ण को पराजित करने का प्रयास किया। बलराम और अन्य यादवों ने उनसे युद्ध किया और विजय प्राप्त की। रुक्मी क्रोधित होकर श्रीकृष्ण के साथ युद्ध आरम्भ किया।ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपनी खड्ग से रुक्मी का वध करने ही लगे तो रुक्मिणी ने रोक दिया। परिणामस्वरूप रुक्मी के बाल मुंडवाए और विकृत कर दिया जिससे वह अपमानित हो गया। तत्पश्चात् वहां से रुक्मिणीप्पिराट्टि सहित प्रस्थान कर द्वारका पहुंचे।
श्रीकृष्ण और रुक्मिणीप्पिराट्टि को देखकर द्वारका नगरी के वासियों ने आनन्दित होकर एक भव्य कल्याणोत्सव किया। पॆरियाऴ्वार् ने पॆरियाऴ्वार् तिरुमॊऴि में श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण और रुक्मी के अपमान करने पर वर्णन किया, ”उरुप्पिणि नङ्गैयैत् तेरेट्रिक् कोण्डु विरुप्पुट्रु अङ्गएग विरैन्दु ऎदिर् वन्दु सेरुक्कुट्रान् वीरम् सिदैय तलैयैच् चिरैत्तिट्टान् वनमैयैप् पादिप्पऱ” (रुक्मिणीप्पिराट्टि को अपने रथ पर चढ़ाकर, श्रीकृष्ण ने शक्तिशाली रुक्मी का सिर मुंडवा दिया जो भयंकर युद्ध करने आया था। देवकी के पुत्र जो सिंह समान हैं उन श्रीकृष्ण की स्तुति करो)। आण्डाळ् नाच्चियार् ने नाच्चियार् तिरुमोऴि में दर्शाया कि कैसे श्रीकृष्ण ने रुक्मिणीपिराट्टि से विवाह कर लिया जबकि शिशुपाल पिराट्टि से विवाह की प्रतीक्षा कर रहा था। ”कण्णालम् कोडित्तुक् कण्णितन्नैक् कैप्पिडिप्पान् तिण्णार्न्दिरुन्दु शिशुपालन् तेशऴिन्दु अण्णान्दिरुक्कवे आङ्गवळैक् कैप्पिडित्तु पॆण्णाळन् पेणुम् ऊर् पेरुम् अरङ्गमे।“ (शिशुपाल को पूर्ण विश्वास था कि विवाह की सभी प्रारम्भिक रीति पूर्ण होने के पश्चात् वह रुक्मिणीप्पिराट्टि (श्रीमहालक्ष्मी) से विवाह करने जा रहा है,वह अपना तेज खो बैठा और असहाय हो आकाश की ओर देखने लगा,जब ऎम्पॆरुमान् ने दयावश रुक्मिणीप्पिराट्टि से विवाह किया और सभी स्त्रियों के आश्रयदाता बन गये। उस दिव्य स्थान का नाम है तिरुवरङ्गम् जहां भगवान विश्राम कर रहे हैं)। नम्माऴवार् ने तिरुवाय्मॊऴि में दर्शाया कि कैसे ऎम्पॆरुमान् युद्ध में विजय प्राप्त कर रुक्मिणीप्पिराट्टि से कल्याणम् किया, ”अन्ऱङ्गमर् वेन्ऱु उरुप्पिणि नङ्गै अणि नेडुन्दोळ् पुणर्न्दान् “ (श्रीकृष्ण ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात् रुक्मिणीप्पिराट्टि के सुन्दर विशाल स्कन्ध को हृदय से लगाया)।
सार-
- भगवान की मुख्य पत्नी श्रीमहालक्ष्मी भगवान के साथ ही अवतरित होती हैं और आनन्द प्राप्त करती हैं।
- जब भी भक्त भयानक परिस्थिति में होते हैं,तो भगवान उस भयानक परिस्थिति से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/10/krishna-leela-34-english/
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