श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< स्यमन्तक मणिलीला, जाम्बवती व सत्यभामा कल्याणम्
प्रद्युम्न का जन्म श्रीकृष्ण और रुक्मिणीप्पिराट्टि के पुत्र के रूप में हुआ था। अपने पूर्व जन्म में वे मन्मथ (कामदेव) थे। उन्हें भगवान के आंशिक अवतार के रूप में महिमा दी गई। शिव की क्रोधित दृष्टि से मन्मथ जलकर भस्म हो गये। उसकी पत्नी रति अत्यंत दु:खी हो गई, परन्तु उसे ज्ञात हो गया कि मन्मथ का पुन:जन्म होगा और उससे विवाह होगा। यह सोचकर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया। मन्मथ ने प्रद्युम्न के रूप में जन्म लिया।
संबर नामक राक्षस प्रद्युम्न को अपना शत्रु मानता और उसके जन्म के कुछ दिन पश्चात् उसे छीनकर समुद्र में फेंक दिया गया। समुद्र में एक बड़ी मछली ने प्रद्युम्न को निगल लिया, परन्तु उसे कुछ मछुआरों ने पकड़ लिया, जिन्होंने उस बड़ी मछली को संबर को उपहार में दे दिया। संबर ने उस मछली को अपने रसोइए को दे दिया, उसने मछली को काटकर उसके अंदर से सुंदर बालक को निकाल कर संबर की दासी मायावती को दे दिया। रति भी स्वयं को मायावती रूप धारण कर वहां रहने लगी। उस समय रति के सामने नारद जी प्रकट हुए और बालक का प्रद्युम्न नाम बताया। वह मन्मथ है जिसका पुनः जन्म हुआ है। यह ज्ञात होने पर वह बहुत प्रसन्न हुई। उसने प्रद्युम्न की अच्छे से देखभाल की और वह बड़ा होकर एक आकर्षक युवक बना। वह श्रीकृष्ण के जैसे सुन्दर था। रति ने प्रद्युम्न को सारा वृत्तान्त सुनाया और संबर के वध के लिए कहा। प्रद्युम्न ने संबर को युद्ध के लिए चुनौती दी और अंततः मार डाला।
तत्पश्चात् दोनों द्वारका पहुंचे, प्रद्युम्न को देखते ही रुक्मिणी जी के हृदय में मातृ-स्नेह उमड़ आया और उनके वक्षस्थल से स्वत: ही दुग्धस्रावित होने लगा। श्रीकृष्ण सर्वज्ञ हैं तब भी वे चुपचाप देखते रहे। नारदजी ने वहां प्रकट हो रुक्मिणी जी को सब कुछ समझाया। सब लोग आनन्दित हुए।
पेयाऴ्वार् (श्रीमहद्योगी) ने अपने मून्ऱाम् तिरुवन्दादि में प्रद्युम्न के बारे में वर्णन करते हैं, “मगन् ओरुवर्क्कल्लाद मामेनि मायन् मगनाम् अवन् मगन्” (अद्भुत विभूति श्रीकृष्ण जो किसी के भी पुत्र नहीं हैं, वे वसुदेव जी और देवकी पिराट्टि के पुत्र बने, प्रद्युम्न उनका पुत्र है।)
सार-
- भगवान के प्राथमिक अवतारों के जैसे आंशिक अवतार भी हैं। उनमें से एक हैं मन्मथ और उनके अवतार हैं प्रद्युम्न।
- इसके अतिरिक्त, व्यूह अवस्था में भगवान चार रूपों में रहते हैं जैसे वासुदेव, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और संकर्षण उनके प्रतिनिधि क्रमशः श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न (पुत्र), अनिरुद्ध (पौत्र) और बलराम हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/13/krishna-leela-36-english/
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