कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ३९ – नरकासुर का वध

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कृष्ण और सत्यभामा पिराट्टि ने नरकासुर का वध कैसे किया उसका आनन्द लें।

कहा जाता है कि नरकासुर का जन्म वाराह भगवान और भूमि पिराट्टि से हुआ परन्तु कुसंगति के कारण वह राक्षस हो गया। वह मानव और दिव्य आत्माओं को प्रताड़ित करता था। उसने कई दिव्य स्त्रियों को पकड़कर बंदी बना लिया। इन्द्रादि ने क्षीरसागर में शयन करते श्रीमन्नारायण के पास जाकर नरकासुर का वध करने के लिए प्रार्थना की, कृष्ण ने उचित समय की प्रतीक्षा करने के लिए कहा।

हमें पहले से ही ज्ञात है कि भगवान ने इस लोक में श्रीकृष्ण और भूदेवी ने सत्यभामा के रूप में अवतरित हुए। कृष्ण ने अपने दिव्य हृदय में प्रतिज्ञा की कि वे सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध करेंगे। उसी समय इन्द्र द्वारकाजी आए और आपत्ति प्रकट की कि नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिति (इंद्र की माता) बालियाँ और मणिपर्वत जो देवताओं का क्रीड़ा क्षेत्र है, हरण कर लिया है। उन्होंने कृष्ण से तत्क्षण रक्षा की प्रार्थना की। कृष्ण तत्क्षण सत्यभामा के साथ अपने रथ पर सवार होकर नरकासुर के नगर की ओर चल दिए।

मुख्य द्वार पर मुहर नामक राक्षसी के द्वारा कृष्ण को युद्ध के लिए आमन्त्रित करने पर उसका सिर अपने दिव्य चक्र से काट दिया। इसीलिए श्रीकृष्ण का एक नाम ‘मुरारी’ हुआ। तत्पश्चात् नरकासुर स्वयं युद्ध करने आया। एक भयंकर युद्ध के पश्चात् श्रीकृष्ण ने नरकासुर का सिर काटकर वध किया। पूर्व विचार था कि नरकासुर को केवल उसकी मां ही मार सकती थीं। नरकासुर ने श्रीकृष्ण पर प्रहार किया वे मूर्च्छित हो गये,उसी समय सत्यभामा ने धनुष बाण के द्वारा नरकासुर का वध कर दिया।

कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ दिव्य स्त्रियों को, जो बंधक थीं, मुक्त कराया। वे सभी कृष्ण को अपने पति रूप में पाना चाहती थीं। इसीलिए कृष्ण उन्हें को द्वारका जी ले आए, अनेक दिव्य रूप धारण कर उन सभी से एक साथ विवाह किया।

कई आऴ्वारों ने नरकासुर के वध की गाथा को गाया है। कुलशेखराऴ्वार् अपने पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं, “नल् नारणन् नरगान्दकन् पित्तने” (परम भगवान श्रीमन्नारायण जिन्होंने नरकासुर का वध किया था, वे भक्तवत्सल हैं।) नम्माऴ्वार् अपने तिरुविरुत्तम् में वर्णन करते हैं – “नलियुम् नरगनै विट्टिट्रुम्” (अन्य को दु:ख देने वाले नरकासुर का वध)। पेरिय तिरुमोऴि में तिरुमङ्गै आऴ्वार् कहते हैं “वेन्ऱि मिगु नरगन् उरम् अदु अऴिय विसिऱुम् विऱल् अऴित् तडक्कैयन्” (भगवान ने अपने विशाल हाथों से शक्तिशाली नरकासुर का वध करने के लिए वीरतापूर्वक चक्र चलाया।)

पेरियाऴ्वार् ने अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में श्रीद्वारिका में भगवान की उपस्थिति के विषय में जानकारी देते हैं कि “पदिन्ऱाम् आयिरवर् देविमार्पणिसेय्य तुवरै इन्नुम् ओदिल् नायगरागि विट्रिरुण्द मणवाळर्” (कृष्ण श्रीद्वारिका जी में भगवान के रूप में जिनकी सोलह हजार पटरानियों द्वारा सेवित हो विराजमान हैं।)

नरकासुर के द्वारा हरण की हुई सभी वस्तुओं को लेकर कृष्ण और सत्यभामा इंद्रलोक गये। इन्द्र ने नरकासुर को हराकर उसका वध करने के लिए धन्यवाद किया और उसी क्षण इंद्र पत्नी इंद्राणी आईं और प्रणाम कर दासियों द्वारा लाए गए पारिजात पुष्पों को अर्पित किया। पुष्पों को देखकर सत्यभामा को उन्हें प्राप्त करने की जिज्ञासा हुई और उसी क्षण मांगा। परन्तु इंद्राणी ने अभिमानसहित कहा कि, “यह दिव्यजनों के लिए है ना कि साधारण जन के लिए”। यह सुनकर सत्यभामा खिन्न हो गई।यह देख कृष्ण ने अपने वाहन गरुड़ाऴ्वार् को पूरा वृक्ष तोड़ने का आदेश दिया। इंद्र को विस्मृत हो गया कि कुछ समय पहले कृष्ण ने ही उनके प्राण बचाए हैं,ओर अब उनसे युद्ध करने आ गया। कृष्ण ने साधारणतः इन्द्र ओर उसकी सेना को पराजित किया और श्री द्वारका जी की ओर लौट आए। उन्होंने वह पारिजात वृक्ष को अपने बग़ीचे में लगाया।

पेरियाऴ्वार् अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में वर्णन् करते हैं कि सत्यभामा ने किस प्रकार पारिजात पुष्प को प्राप्त करने की जिज्ञासा दिखाई, “कऱ्-पगक्कावु करुदिय कादलिक्कु इप्पोऴुदु इवन् एन्ऱु इन्दिरन् काविनिल् निऱ्-पन एन्नैप् पुऱम् पुल्गुवान् उम्बर् कोन् एन्नैप् पुऱम् पुल्गुवान्” (कृष्ण जो अपनी प्रिय पत्नी जो इंद्र के बग़ीचे से कल्पक वृक्ष चाहती थी कहा “मैं अवश्य तुम्हारे लिए ले आऊँगा” और तुरन्त ही बग़ीचे में लगाया, इसके लिए पीठ थपथपाओ।)

सार-

  • नरकासुर का वध जिस दिन हुआ उस दिन नरकचतुर्दशी के रूप में दीपावली की भांति प्रार्थना की जाती है।
  • इंद्रादि देवता भगवान से भारी मात्रा में वस्तुओं को प्राप्त करके भी अभिमान करते हैं कि वे दिव्य हैं। तब भी भगवान उन्हें क्षमा कर देते हैं।
  • भगवान ने अपना गृहस्थ जीवन (गृहस्थ आश्रम) श्रीद्वारिका जी में अद्भुत रूप में निर्वाह किया।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/15/krishna-leela-39-english/

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