कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४१ – पौण्ड्रक और सीमालिक का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः। श्रीमते रामानुजाय नमः। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः।

श्रृंखला

<< बाणासुर का वध

वासुदेव कृष्ण की महिमा को देखकर, पौण्ड्रक नामक करुष राजा ने स्वयं को सच्चा और सर्वश्रेष्ठ स्वामी मानने लगा। वह कृष्ण की भांति शंख और चक्र लेकर घूमने लगा। एक बार उसने श्रीद्वारिका में विराजमान कृष्ण को दूत के माध्यम से संदेश भेजा, “कृष्ण! मैं ही वास्तविक वासुदेव हूँ। मैं ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति हूँ जिस पर सब आश्रित रहेंगे। अतः तुम्हें अपना नाम वासुदेव, शंख, चक्र, खड्ग, गदा आदि का त्याग कर देना चाहिए। अन्यथा मेरे साथ युद्ध करने आओ।” यह सुनकर उग्रसेन आदि वृद्ध हँसने लगे। कृष्ण ने संदेश सुनकर संदेशवाहक द्वारा प्रत्युत्तर दिया, “मूर्ख! मैं शीघ्र ही तुम्हें पराजित कर दूँगा।”

कृष्ण अपने रथ पर चढ़कर काशी पहुँचे। काशी का राजा पौण्ड्रक का मित्र था, पौण्ड्रक के आगे बढ़ते ही काशी के राजा विशाल सेना लेकर उसकी सहायता करने पीछे गए। पौण्ड्रक की वेशभूषा, वस्त्र, आचरण, हथियार कृष्ण के समान थे। कृष्ण ने उसको हँसते हुए देखा। तत्पश्चात् एक भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ। शत्रुओं ने कृष्ण पर आक्रमण किया तो कृष्ण ने प्रत्युत्तर में चक्र और अन्य आयुधों का प्रयोग करके उन सब का विनाश कर दिया। कृष्ण ने चक्र द्वारा पौण्ड्रक का शीर्ष धड़ से अलग कर दिया और शरों द्वारा काशीराज का शीर्ष काट दिया और श्रीद्वारका लौट आए। पौण्ड्रक सर्वदा कृष्ण के विषय में ही सोचता था इसलिए उसे परमपद की प्राप्ति हुई।

तत्पश्चात् कृष्ण से बदले की भावना रखते हुए काशीराज के पुत्र सुरक्षित ने रुद्र की घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर रुद्र ने सुरक्षित को दक्षिणाग्नि के साथ अभिचार कर्म (किसी अनिष्ट के लिए काला जादू) करने को कहा, और उसने किया। तब अग्नि से एक विकराल रूप निकला जो द्वारका की ओर गया। द्वारका के वासी भयभीत हो गए और कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण करने लगे। कृष्ण ने चक्र द्वारा उस अग्नि को दूर किया। वह अग्नि काशी लौट गयी और सुदक्षिण और काशी नगर को विनाश कर दिया, अन्ततः वह सब विनष्ट हो गया।

आळ्वारों ने अपने पासुरों में इस लीला की व्याख्या की है।

  • तिरुमऴिशै आऴ्वार् अपने तिरुच्चन्द विरुत्तम में कहते हैं “काशिनात्थ काशि मन्नन् वक्करन् पवुण्णडिरन्” (श्रीकृष्ण ने काशीराज दन्तवक्र और पौण्ड्रक को मार डाला था जो बहुत क्रुद्ध थे।)
  • नम्माऴ्वार् के तिरुवाय्मोऴि के पासुर में वर्णन किया, ओरु नायगमाय् ओड उलगुडन् आण्दवर्”, नम्पिळ्ळै व्याख्या करते हैं “पौण्ड्रक वासुदेव जैसे राजा”।
  • तिरुमङ्गै आऴ्वार् के पेरिय तिरुमोऴि पासुरम् में वर्णन करते हैं, पुगरार् उरुवागि मुनिन्दवनैप् पुगऴविड मुनिन्दु उयिर् उण्डु असुरन् नगरायिन पाऴ् पद नामम् एऱिन्दु” (वह राक्षस जिसका रुप तेजस्वी था और क्रुद्ध था, जिसकी राजधानी खंडहर में बदल गई,उ सका नाम सदा के लिए समाप्त हो गया) पेरियाच्चान् पिळ्ळै कहते हैं कि यहां राक्षस पौण्ड्रक या हिरण्याक्ष ही हो सकता है।

सीमालिक के वध की ऐसी लीला पेरियाऴ्वार् ने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में दर्शायी है, “सीमालिकन् अवनोडु तोऴमै कोळ्ळवुम् वल्लाय् सामाऱु अवनै नी एण्णिच्चक्करत्ताल् तलै कोण्डाय्” (आप सीमालिक के साथ मित्रता करने में सक्षम हैं, परन्तु आपने चक्र द्वारा उसका शीर्ष काट दिया) उसका वध कर दिया।

मणवाळ मामुनि ने (श्रीमद् वरवरमुनि जी), जिन्होंने दयालुता पूर्वक सीमालिक चरितम्  की व्याख्या  की है, यह लीला इतिहास में भी वर्णित है। मालिका एक राक्षसी थी, भगवान कृष्ण उसे अपना मित्र मानते थे। उसने भगवान से शस्त्र विद्या सीखी। परन्तु उसने उस योग्यता का दुरुपयोग कर महर्षियों को पीड़ित करने लगी। कृष्ण ने सोचा, ”वह मेरी मित्र हैं, मैं उसका वध कैसे कर सकता हूं।” एक दिन मालिका ने कृष्ण के पास जाकर चक्र का उपयोग करना सीखने का अनुरोध किया, ”आप मुझे चक्र का उपयोग करना सीखाएं।” कृष्ण ने मना किया। मालिका तब क्रोध में कहने लगी। कृष्ण ने उसके वध का एक कारण यह भी कहा। उन्होंने सीमालिक को चक्र का आह्वान् करना सीखा दिया।परन्तु उसके प्रतिफल  में चक्र प्राप्त कैसे करना है यह नहीं सिखाया। जब मालिका ने चक्र कृष्ण के करकमलों से ले तो लिया, परन्तु धारण करना नहीं आया, इस कारण उसका शीर्ष काट गया और चक्र लौट कर कृष्ण के पास आ गया। कृष्ण की संख्या होने के कारण उसका नाम श्रीमालिका (सीमालिक) सदैव ही रहा।

सार-

  • यह सत्य है कि सभी आत्माएं भगवान की दास हैं। परन्तु कुछ लोग स्वयं को भगवान मानने लगते हैं।यदि कोई उनपर विश्वास कर अनुसरण करता है,तो वे केवल विनाश के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।
  • यदि कोई भगवान की भांति वस्त्र पहने,और भगवान से मित्रता करें, परन्तु भगवान के प्रति सच्ची प्रीति न हो, भगवान उसे सहज ही नष्ट कर देते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी।

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/17/krishna-leela-41-english/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

Leave a Comment