कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४४ – शिशुपाल का वध

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श्रृंखला

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युधिष्ठिर ने कृष्ण की उपस्थिति में राजसूय यज्ञ आरम्भ किया। यज्ञ में बहुत ऋषियों और विद्वानों को सम्मिलित किया।

यज्ञ में प्रथम सम्मान किसको दिया जाए यह प्रश्न उठा। तत्क्षण सहदेव ने दृढ़ता से स्पष्टीकरण किया, “सर्वश्रेष्ठ सम्मान कृष्ण को ही प्रदान करना चाहिए।” सभी विद्वानों और जनों सहदेव के शब्दों को आनन्द पूर्वक स्वीकार किया। युधिष्ठिर ने कृष्ण को एक उच्चासन पर विराजमान कर उनके चरण प्रक्षालन किया, पाद पूजा की, उस पवित्र जल को अपने और अपने सम्बन्धियों के शीर्ष पर छिड़का। वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने मिलकर ऊंची ध्वनि से विजय! विजय! का जयघोष किया, आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई।

यह सब देखकर शिशुपाल क्रोधित हुआ। वह पहले से ही कृष्ण से शत्रुता रखता था। उसने कृष्ण पर अपमानित शब्द कहे। यह देखकर पांडव उस पर आक्रमण करने ही गये कि कृष्ण ने उनको रोक दिया। कृष्ण की पहले से यह प्रतिज्ञा थी कि शिशुपाल के सौ अपराधों तक सहन करना है। इस सीमा को पार करते ही उसको दण्डित करेंगे। इस प्रतिज्ञा के अनुसार शिशुपाल के सौ अपराध हो जाने पर सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। जबकि उस समय शिशुपाल ने कृष्ण के दिव्य नामोच्चारण किया। ब्रह्मा के मानस पुत्रों के श्राप के कारण इस संसार में उसके तीन जन्म समाप्त हो गये और वह भगवान के धाम पहुँचा।

तत्पश्चात् यज्ञ सम्पन्न हुआ। युधिष्ठिर ने वहाँ सभी माननीय जनों को उत्तम उपहार देकर भेजा। भगवान कृष्ण भी सपरिवार द्वारका की ओर प्रस्थान किये।

आऴ्वारों ने कुछ स्थानों पर शिशुपाल वध को दर्शाया है। पेरियाऴ्वार् ने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कहा, “पलपल नाऴम् सॊल्लिप् पऴित्त शिशुपालन् तन्नै अलवलैमै तविर्त्त अऴगन् अलङ्गारन् मलै” (सुन्दर और सुसज्जित भगवान कृष्ण जिन्होंने शिशुपाल के प्रलाप को समाप्त कर दिया, जिसने कृष्ण के प्रति अपराध किए।) नाच्चियार् तिरुमोऴि में आण्डाळ् वर्णन करती हैं, “अन्ऱु इन्नादन सॆय् शिशुपालनुम्” (उस दिन पाप करने वाले शिशु पालन) जिनका कृष्ण ने वध किया। नम्माऴ्वार् तिरुवाय्मोऴि में बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है कि शिशुपाल को परमगति कैसे प्राप्त हुई, “केट्पार्गळ् केशवन् कीर्ति अल्लाल् मट्रुम् केट्परो केट्पार् सॆवि सुडु कीऴ्मै वसवुगळे वैयुम् सेट्पाल् पऴम् पगैवन् शिशुपालन् तिरुवडि ताळ् पाळ् अडैन्द तन्मै अऱिवारै अऱिन्दुमे” (शिशुपाल जो बहुत समय पहले से ही भगवान कृष्ण के प्रति शत्रु भाव रखते हुए अपशब्द कहे, और भगवान के प्रति कहे इन अपशब्दों को सुनकर भक्तजन के कानों में जलन उत्पन्न हो गई और भगवान के चरण कमल का सायुज्य प्राप्त किया। जो लोग (मोक्ष के विषय में) सुनने वाले, वे क्या सुनेंगे? (केशी के संहारक कृष्ण के अतिरिक्त ओर कौन महान है जिसने उनको भी मोक्ष प्रदान किया जिन्होंने उसकी सहायता की थी।)

सार-

  • क्षीरसागर के द्वारपाल जय और विजय, जिसे विष्णु लोक कहा जाता है जो इस संसार में है, को ब्रह्मा के मानस पुत्रों ने श्राप दिया कि इस संसार में तीन बार जन्म लेना पड़ेगा, उन जन्मों में भगवान का विरोध करोगे। जिसमें शिशुपाल और दन्तवक्र अन्तिम जन्म था।
  • हमारे पूर्वाचार्यों ने शिशुपाल द्वारा भगवान के दिव्य चरणों की प्राप्ति के भिन्न-भिन्न साधन बताये हैं। कुछ लोगों का कहना है कि शिशुपाल के द्वारा जनसमूह को पथभ्रष्ट करने से बचाने के लिए भगवान उसे परमपद में एक कोने में रखने के लिए ले गए। कुछ लोगों का कहना है कि भगवान द्वारा वध किए जाने से पहले कृष्ण ने उसे अपना दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया, जिससे उसमें परम भक्ति बढ़ी और भगवान के धाम पहुँचा।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी।

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/20/krishna-leela-44-english/

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