कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४९ – विदुर पर कृपा

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श्रृंखला

<< पांडव दूत – भाग १

पाण्डु और विदुर धृतराष्ट्र के अनुज थे। विदुर कृष्ण के बहुत श्रद्धा रखते थे। हमारे सम्प्रदाय में वे इतने महान हैं कि उनको विदुराऴ्वान् के नाम से जाना जाता है। जब कृष्ण पाण्डवदूत के रूप में हस्तिनापुर आए तो उन्होंने विदुर जी पर विशेष कृपा बरसाई। आइए उस लीला का आनन्द लें।

कृष्ण पांडवों से प्रस्थान कर धृतराष्ट्र के हस्तिनापुर पहुंचे और सीधे विदुर जी के महल में प्रवेश किया। कृष्ण के आने की आशा न होने के कारण, सर्वेश्वर की भक्ति और विस्मयबोध होकर उनके स्थान पर पहुंचकर, विदुर जी सिहर उठे, उनको समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। उन्होंने कृष्ण को आमंत्रित किया और उनके लिए आसन बनाया, और उसका निरीक्षण किया। जबकि वह आसन स्वयं ही रखा था। परन्तु धृतराष्ट्र आदि से सम्बन्ध होने के कारण उनको विचार आया कि कृष्ण को आहत न पहुंचे।

तत्पश्चात् उन्होंने कृष्ण को भोजन अर्पित करने की जिज्ञासा व्यक्त की, उन्होंने कदली फल (केला) उठाया, उसका छिलका उतारकर फल को गिरा दिया और छिलका कृष्ण को दे दिया। कृष्ण ने भी उसको प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया।
इसके पश्चात् कृष्ण ने अपने आगमन का कारण बताया कि युद्ध निश्चित है और विदुर जी को उसमें भाग नहीं लेना चाहिए।

कृष्ण धृतराष्ट्र की राजसभा में गये। जबकि दुर्योधन को कृष्ण के आगमन की जानकारी थी तब उसने सभी को आदेश दिया कि कृष्ण के प्रवेश करने पर कोई भी अपने आसन से नहीं उठेगा परन्तु अकस्मात् वह स्वयं खड़ा हो गया और यह देख कर सभी सभा में उपस्थित खड़े हो गये। जब दुर्योधन ने पूछा कि, “तुम खड़े क्यों हो गये?” तो उन्होंने कहा, “क्योंकि आप खड़े हो गये, इसलिए हम खड़े हो गये।” उसने लज्जित होकर सिर झुका लिया।

दुर्योधन ने क्रोधित होकर कृष्ण से पूछा, “जब भीष्म पितामह, द्रोण और मेरे उपस्थित होने पर, आप नीच विदुर के यहाँ क्यों गये?” कृष्ण ने कहा, “हमें शत्रुओं के यहाँ नहीं खाना चाहिए और न ही शत्रुओं को खिलाना चाहिए।” कृष्ण ने प्रत्युत्तर दिया, “जैसे कि आप पांडवों के प्रति शत्रुता रखते हैं, इसलिए आप मेरे भी शत्रु बन गए हैं। इसीलिए मैं आपके यहाँ आने के अतिरिक्त विदुर जी के यहाँ गया, जो मुझसे बहुत स्नेह करते हैं।”

सार-

  • जब भगवान के भक्त उनके प्रति अत्यधिक भक्ति के कारण मोह ग्रस्त हो जाते हैं तब वे उनका आनन्द लेते हैं।
  • भगवान ने श्रीगीताजी में गये अपने कथन को विदुर जी के समक्ष सिद्ध किए कि जो कोई भी उन्हें प्रेम पूर्वक कुछ भी अर्पित करता है,वे उसे स्वीकार करते हैं।
  • विदुर जी की भगवान के मङ्गलाशासन के लिए प्रशंसा की गई है (जो सदा भगवान के लिए मङ्गल कामना करते हैं) जैसे पेरियाळ्वार्,नम्माळ्वार् और पिळ्ळै उऱङ्गा विल्लीदासर की हुई।
  • विदुर जी की महानता को देखकर कृष्ण ने युधिष्ठिर को आदेश दिया कि वे उनका अंतिम संस्कार ब्रह्ममेध संस्कार के रूप में करें,जो महान भागवतों के लिए किया जाता है।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी।

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/25/krishna-leela-49-english/

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