कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५८ – वैदिक के पुत्रों को लौटाना

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कृष्ण श्री वैकुंठ से एक वैदिक (ब्राह्मण) के पुत्रों को कैसे वापस लाए, आइए इसका‌ आनंद लें।

एक बार कृष्ण और अर्जुन, कृष्ण के निवास स्थान पर बैठे थे, तभी एक ब्राह्मण दु:खी अवस्था में वहाँ पहुँचा। उसने कृष्ण से कहा, “मेरे यहाँ तीन बच्चे पैदा हुए, परन्तु सभी पैदा होते ही लुप्त हो गये। अब मेरी पत्नी गर्भवती है और जल्द ही एक बालक को जन्म देने वाली है। आपको इस बालक की रक्षा करनी होगी।” कृष्ण एक यज्ञ दीक्षा में थे। अर्जुन ने स्वेच्छा से यह कार्य करने का वचन दिया। वह ब्राह्मण को प्रसूति गृह में ले गया और बाणों से उस स्थान के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना दिया। जैसे ही बच्चा पैदा हुआ, उसकी पुकार सुन तो सके, परन्तु जैसे पहले हुआ वैसे ही इस बार हुआ। बालक लुप्त हो गया। ब्राह्मण क्रोधित हुआ और अर्जुन को अपने साथ कृष्ण के पास ले गया और कहने लगा, “कृष्ण! आपको स्वयं आना चाहिए था। बल्कि आपने अर्जुन को भेजा है, इस प्रकार मैंने एक बालक और खो दिया।”

कृष्ण ने उन दोनों को अपने रथ पर आरूढ़ किया, रथ ऊपर की ओर उठने लगा। वे पृथ्वी के ऊपर के लोकों और अण्डाकार ब्रह्माण्ड के चारों ओर की सात आवरणों को पार करके विरजा नदी के तट पर पहुँचे। उन्होंने (कृष्ण) ब्राह्मण और अर्जुन को रथ में ही रहने दिया, रथ से उतरकर विरजा को पार किया। परमपद के महान मंडप में प्रवेश किया। उन्होंने देखा कि उनकी दिव्य पत्नियाँ चारों बालकों के साथ क्रीड़ा कर रही हैं उनसे बालकों को वापस लिया। उन्होंने कृष्ण को बताया कि यह कार्य कृष्ण को परमपद में लाने के लिए ही किया है ताकि वे उनका दर्शन प्राप्त कर सकें। कृष्ण उन बच्चों के साथ परमपद से बाहर आए और अर्जुन और ब्राह्मण को द्वारका ले गए। बालकों को प्राप्त कर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ। कृष्ण ने यह सब प्रभात के अनुष्ठान और दोपहर के अनुष्ठान के आरम्भ करने से पहले किया।

श्री भागवतम्  में इस लीला को भिन्न रूप में दर्शाया है। हमारे पूर्वजों ने बताया कि यह युग भेदम् के कारण है। अर्थात् ये लीलाएँ चार युगों के संयोजन में पुनः पुनः होती हैं प्रत्येक समय में परिवर्तन हो जाता है।

आऴ्वारों ने इस लीला को अपने पासुरों में बहुत अद्भुत वर्णन किया है।

  • पेरियाऴ्वार् अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कहते हैं, पिऱप्पगत्ते माण्डॊऴिन्द पिळ्ळैगळनाल्वरैयुम् इऱैप्पॊऴुदिल् कॊणर्न्दु कॊडुत्तु ऒरुप्पडुत्त उऱैप्पनूर” (शक्तिशाली कृष्ण भगवान जिन्होंने जन्म लेते ही लुप्त होने वाले बच्चों को शीघ्र ही वापस ले आए,और पिता को सहमति जताई कि वे उनके बालक हैं)।
  • नम्माऴ्वार् ने तिरुवाय्मोऴि में वर्णन किया, “इडर् इन्ऱिये ऒरु नाळ् ऒरु पोऴ्दिल् ऎल्ला उलगम् कऴियप् पडर् पुगऴप् पार्त्तनुम् वैदिकनुम् उड़न् एऱत् तिण् तेर् कडविच् चुडर् ऒळियाय् निन्ऱ तन्नुडैच् चोदियिल् वैदिगन् पिळ्ळैगळै उडलोडुम् कॊण्डु कॊडुत्तवनैप् पट्रि ऒन्ऱुम् तुयर् इलेने” (एम्पेरुमान् एक दिन एक विशेष समय पर (एक कैङ्कर्य के पूर्ण होने और दूसरे कैङ्कर्य आरम्भ होने से पहले) सभी भौतिक संसार से चले गए, महान प्रसिद्ध अर्जुन और ब्राह्मण को रथ पर चढ़ाकर निर्विघ्न अपने महान तेजस्वी धाम पर पहुँचकर जो “परम ज्योति” (परम तेजस्वी धाम) शब्द से जाना जाता है, उस ब्राह्मण के चारों पुत्रों को उनके अपरिवर्तित देह सहित वापस ले गए (क्योंकि परमपद धाम समय के परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता), और उन्हें ब्राह्मण को दे दिया; मैंने ऐसे एम्पेरुमान् के पास जाकर उनका आनन्द लिया और सभी प्रकार के सांसारिक दुःखों से मुक्त रहा)।
  • तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने अपने पेरिय तिरुमोऴि, में वर्णन किया है, “वेद वाय् मॊऴि अन्दणन् ऒरुवन ऎन्दै! निन् सरण्, ऎन्नुडैय मनैवि कादल् मक्कळैप् पयत्तलुम् काणाळ् कडियदोर् दैय्वम् कॊण्डॊळिक्कुम् ऎन्ऱऴैप्प एदलार् मुन्ने इन्नरुळ् अवर्क्कुच् चॆय्दु उन्मक्कळ् मट्रिवर् एन्ऱु कॊडुत्ताय्” (जो विद्वान ब्राह्मण की पत्नी ने अपनी सन्तान को खो दिया, तो वह आपके [कृष्ण के] पास आया और प्रार्थना की, “हे मेरे प्रभु! कृपया सहायता करो।” आपने तब उस ब्राह्मण पर अपनी कृपा बरसाई, जबकि शत्रुओं द्वारा यह बताया जा रहा था कि उसके बालक वापस नहीं ला सकता, वे बच्चों को वापस लाकर ब्राह्मण को दे दिया और कहा, “ये आपके बच्चे हैं”)।

सार-

  • भगवान ने अर्जुन और ब्राह्मण को विरजा नदी के इस पार (संसार की ओर) ही रोका और स्वयं विरजा पार कर श्री वैकुंठ में प्रवेश किया। ऐसा इसलिए किया क्योंकि जो लोग वहाँ प्रवेश करते हैं, वे इस संसार में नहीं लौटते। भगवान कहीं भी जाने की क्षमता रखते हैं परन्तु सांसारिक लोग ऐसा नहीं कर सकते।
  • श्री महालक्ष्मी कृष्ण को उनके वास्तविक रूप में देखना चाहती थीं और इसीलिए उन्होंने लीला की। उनकी इच्छा से ही वे बच्चे श्री वैकुंठ में प्रवेश कर गए। कृष्ण के दर्शन करने के पश्चात् ब्राह्मण के अनुरोध पर कृष्ण उन्हें वापस ले आए। यह उनकी स्वेच्छा का परिणाम है। जबकि शास्त्र में वर्णित है कि जो लोग एक बार श्री वैकुंठ में जाते हैं वे वापस नहीं लौटते परन्तु भगवान की स्वेच्छा से ऐसा हुआ।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/11/04/krishna-leela-58-english/

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