आचार्य हृदयम् – ७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः 

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अवतारिका (परिचय)

यह सत्व, रज और तम इन गुणों के होने का कारण बताता है।

चूर्णिका – ७

सत्व असत्व निदानम् इरुळ् तरुम् अमलङ्गळाग एन्नुम् जन्म जायमान काल कटाक्षङ्गळ।

सामान्य व्याख्या

इस संसार में जन्म के समय भगवान की कृपा दृष्टि जीव पर पड़ने से सत्वगुण उत्पन्न होता है और ऐसी दृष्टि न पड़ने से असत्व (रजस, तमस) गुण प्रकट होता है।

व्याख्यान (टीका टिप्पणी)

रजस तमस गुणों के मूल के कारण अज्ञानता के साथ इस संसार में जन्म लेना, जैसे कि तिरुविरुत्तम् १ में कहा गया है, “इरुळ् तरुमा ज्ञालत्तुळ् इनिप् पिऱवि” (इस संसार में जन्म लेना ही अज्ञानता का कारण बनता है)। सत्वगुण का कारण क्या है? जैसा कि महाभारत के मोक्ष पर्व में कहा गया है, “जायमानम् हि पुरुषम् यम् पश्येत् मधुसूदन:। सात्विकस् स तु विज्ञेय: स वै मोक्षार्थ चिन्तक:।।” (जन्म के समय भगवान सर्वेश्वर जिस पर भी कृपा दृष्टि डालते हैं, वह व्यक्ति सत्वगुण से सम्पन्न होता है)‌ और मोक्ष की इच्छा रखता है)। तिरुवाय्मोऴि १.९.९ में वर्णन किया है कि, “अवन् कण्गळाले अमलङ्गळाग विऴिक्कुम्” (भगवान ने मुझे पर करुणामय दृष्टि डालकर मेरा अज्ञान दूर कर दिया)।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2024/03/01/acharya-hrudhayam-7-english/

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