श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः
अवतारिका (परिचय)
नायनार का कहना है कि भगवान और आत्मा के मध्य सम्बन्ध शास्त्र प्रदानम् (शास्त्र प्रदान) करना है।
चूर्णिका – १३
इन्द उदरत्तरिप्पु त्रैगुण्य विषयमानवट्रुक्कु प्रकाशकम्।
सामान्य व्याख्या
इस सम्बन्ध के कारण ही भगवान ने शास्त्र (वेद) प्रदान किया।
व्याख्यान (टीका टिप्पणी)
अर्थात् यह नारायणत्व (श्रीमन्नारायण जो सबके धाम हैं और सभी में विराजमान हैं) के कारण जो सम्बन्ध है, यही वेद (शास्त्र) को प्रकट करने का कारण है जो चेतनाओं (आत्माओं) के लिए लक्षित है जो सत्व, रजस और तम जैसे गुणों से बंधे हैं, जैसे कि श्रीमद्भगवद्गीता २.४५ में वर्णन है, “त्रैगुण्यविषया वेदा:” (वेदम् जो त्रैगुण्य (सत्व, रजस, तमस) वाले जन के कल्याण के लिए हैं)। वेद का पूर्व भाग सत्व, रजस और तम की अधिकता वाले चेतनाओं की रुचि के आधार पर लक्ष्य और साधन का विस्तृत वर्णन करता है। इसलिए वेद को त्रैगुण्य विषय (तीन गुणों के विषय में) कहा गया है।
यह भी समझाया गया है कि शास्त्र प्रदान का कारण जिसे पहले चूर्णिका १ में जाना गया था , “नीर्मैयिनाल् अरुळ् सेय्दान” (कृपापूर्वक उनकी करुणा के कारण दिया) यही सम्बन्ध है।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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