श्रीवचन भूषण – सूत्रं ३६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरी शृंखला

<< पूर्व

अवतारिका

इन आऴ्वारों द्वारा अर्चावतार में इस तरह से प्रपत्ती करने का कारण, जबकि भगवान के अन्य स्वरूप जैसे कि पर स्वरूप (परमपद में) मौजूद हैं, भगवान के इस स्वरूप में गुणों की पूर्णत: है; श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी गुणों की ऐसी सम्पूर्णता को प्रमाणीक संदर्भ के साथ दयापूर्वक समझाते हैं।

सूत्रं – ३६

पूर्णम् ऎङ्गैयाले ऎल्ला गुणङ्गळुम् पुष्कलङ्गळ्.

सरल अनुवाद

क्योंकि यह शास्त्र में कहा गया हैं “पूर्णम्  सभी गुण पूर्णत: विद्यमान हैं। 

व्याख्यान

पूर्णम् …

पूर्णम् ऎङ्गैयाले

जैसा कि कठवल्लि उपनिशद में श्रुति (वेदम्) में कहा गया है “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते| सर्वं पूर्णं सहोम्”   (अर्चावतार जिसमें सभी गुण पूर्ण हैं और जो व्यूह वासुदेव से उत्पन्न हुआ है, जो सभी अवतारों का स्रोत है, पर, व्यूह, विभव, अंतर्यामी और अर्चा में अंतिम रूप के स्वरूप में रहता है। ऐसे अर्चावतार में हमारा लक्ष्य होते हुए, सभी गुण पूर्ण रूप से विद्यमान हैं)।

ऎल्ला गुणङ्गळुम् पुष्कलङ्गळ्

इस अर्चावतार में, सभी गुण, अर्थात् आश्रयण सौकर्य आपाधक गुण (जो एक व्यक्ति को भगवान के प्रति समर्पण करने का विश्वास दिलाता है) और आश्रित कार्य आपाधक गुण (जो भगवान को समर्पण करने वाले व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करता है), पूरे रूप से उपस्थित हैं।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/01/19/srivachana-bhushanam-suthram-36-english/

संगृहीत- https://granthams.koyil.org/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment