श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
यह पूछे जाने पर कि “इस प्रकार, यदि चेतन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो साधन (उपायम्) मानने योग्य हो, तो वह कौन सा साधन है जो उसे परिणाम देता है?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उत्तर देते हैं।
सूत्रं – ६६
“उन् मनत्ताल् ऎन् निनैन्दिरुन्दाय्” ऎन्गिऱपडिये प्राप्तिक्कु उपायम् अवन् निनैवु।
सरल अनुवाद
जैसा कि पेरिय तिरुमोऴि २.७.१ में कहा गया है “उन् मनत्ताल् ऎन् निनैन्दिरुन्दाय्” (आपने अपने दिव्य हृदय में क्या विचार किया?) लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधन (उपायम्) भगवान का विचार है।
व्याख्या
उन् मनत्ताल्…
अर्थात् – क्योंकि चेतन में कुछ भी साधन बनने के योग्य नहीं है, जैसा कि पेरिय तिरुमोऴि २.७.१ में कहा गया है “उन् मनत्ताल् ऎन् निनैन्दिरुन्दाय्” – जैसा कि श्रीपरकाल स्वामीजी ने सबके शुभचिंतक, भगवान का ध्यान करते हुए सोचा, “आप अपने दिव्य हृदय में क्या विचार कर रहे हैं, जहाँ आप उन लोगों के लिए भी आश्रय देते हैं जो पूरी तरह से पतित हैं?”, उन्हें प्राप्त करने का साधन है – भगवान का विचार, जो चेतन के उत्थान के लिए सर्वज्ञ, सर्वशक्ति (सर्वशक्तिमान), प्राप्त (उपयुक्त स्वामी) और परमदयालु हैं।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/18/srivachana-bhushanam-suthram-66-english/
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