श्रीवचन भूषण – सूत्रं ७४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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जब उनसे पूछा गया कि “यदि यह (शेषत्व/दास्यम् [दासत्व]) आत्मा का स्वरूप निरूपकम् है, तो क्या यह आत्मा के लिए प्रारम्भ से ही उपस्थित नहीं होना चाहिए था? क्योंकि यह अब प्रकट हो रहा है जबकि यह पहले उपस्थित नहीं था और क्योंकि यह एक विशेष कारण के आधार पर इस संसार में देखा जाता है तो क्या यह दास्यम्, आकस्मिक (अप्राकृतिक) है?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझाते हैं।

सूत्रं – ७४

इदुतान वंदेऱि यन्नु ।

सरल अनुवाद

यह आकस्मिक नहीं हैं (अप्राकृतिक)।

व्याख्या

इदुतान वंदेरि यन्नु ।

इदुतान्

वर्तमान में जिस विषय का विश्लेषण किया जा रहा है वह है ‘दास्यम्’।

वंदेऱि

आकस्मिक (अप्राकृतिक)।

यन्नु

“नहीं” कहने से तात्पर्य यह है कि यह दास्यम् स्वाभाविक है। ऐसा कहा गया है “स्वोज्जीवनेच्छा यदितेस्वसत्तायं स्पृहायति। आत्म दास्यं हरे स्वाम्यं स्वभावञ्च सदा स्मर।।” (क्योंकि आप स्वयं की मुक्ति के इच्छुक हैं और शास्त्र के माध्यम से स्वयं के वास्तविक अस्तित्व को जानने के इच्छुक हैं आप हमेशा आत्मा को एक प्राकृतिक सेवक और हरि (श्रीमन्नारायण) को प्राकृतिक स्वामी होने का ध्यान करते हैं) और तिरुप्पल्लाण्डु ११ में “नानुम् उनक्कुप् पऴवडियेन्” (मैं आपका शाश्वत सेवक हूँ)।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/30/srivachana-bhushanam-suthram-74-english/

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