श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
जब उनसे पूछा गया कि “फिर भी क्या यह असाधारण कार्य [अपने शरीर को त्यागना] भगवान के लिए बाधा नहीं बनेगा जो सिद्धोपाय (तत्परता से उपलब्ध साधन) हैं जो स्वयं से किसी भी प्रयास को सहन नहीं करते हैं?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयालुतापूर्वक उत्तर देते हैं।.
सूत्रं – ९२
उपाय फलमाय् उपेयान्तर्भूतमाय् इरुक्कुमदु उपाय प्रतिबन्धकम् आगादु।
सरल अनुवाद
जो कर्म उपाय (भगवान जो सहज उपलब्ध साधन हैं) [के प्रयासों] का परिणाम है और जो लक्ष्य का एक भाग बन जाता है, वह साधन के लिए बाधा नहीं होगा।
व्याख्या
उपाय …
उपाय फलम्
यह भगवान के प्रयासों का परिणाम है जो सिद्धोपाय हैं। जैसा कि श्रीसहस्रगीति १.१.१ में कहा गया है “मयर्वऱ मदिनलम् अरुळिनन्” (भगवान जिन्होंने आऴ्वारों को शुद्ध ज्ञान और भक्ति का आशीर्वाद दिया) और श्रीसहस्रगीति ५.३.४ “पेरमर् कादल् कडल् पुरैय विळैवित्त कारमर् मेनि नम् कण्णन्” (हमारे आज्ञाकारी कृष्ण मेघ जैसे दिव्य रूप के होते हुए, (अनंत सागर जैसी) भक्ति को उत्पन्न किया) – भगवान भक्ति के निर्माता और पोषक हैं जो ऐसे असाधारण कार्यों को जन्म देते हैं। इसलिए श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं कि यह कार्य, जो भक्ति से बँधे होने के कारण हो रहा है, वह उपाय का परिणाम है।
उपेय अंतर्भूतम्
क्योंकि मडल् आदि कर्म कैंकर्य के समान हैं जो भगवान की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं, क्योंकि भगवान सोचेंगे कि “मुझे पाने की तीव्र इच्छा के कारण, वे महान पीड़ा के साथ इन कार्यों में लगे हुए हैं; मुझे पाने की इच्छा के कारण वे ऐसे कष्टों से बीत रहे हैं! कितना अच्छा है!” और इस विषय में आनंद अनुभव करेंगे, वे उपेय (लक्ष्य) के भाग बन जायेंगे।
उपाय प्रतिबन्धकम् आगादु
ऐसे कार्य ऐसे उपाय (भगवान) के लिए आत्मा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में बाधा नहीं बनेंगे।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/29/srivachana-bhushanam-suthram-92-english/
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