श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९९

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श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं कि ये शम और दम उन लोगों के लिए आवश्यक हैं जो सांसारिक सुख चाहते हैं और साथ ही उन लोगों के लिए भी जो मोक्ष चाहते हैं।

सूत्रं९९

इदुदान् ऐश्वर्य कामरक्कुम्, उपासकर्क्कुम्, प्रपन्नलशर्क्कुम् वेणुम्।

सरल अनुवाद

ये उन लोगों के लिए आवश्यक हैं जो सांसारिक धन चाहते हैं, जो भगवान तक पहुँचने के लिए भक्ति योग का अभ्यास करते हैं और जो भगवान तक पहुँचने के लिए उनकी शरण में आते हैं।

व्याख्या

इदुदान्

जो लोग सांसारिक धन की चाह रखते हैं, यद्यपि उनका लक्ष्य शब्द आदि पर आधारित भोग है, उनके लिए साधना करते समय शम,  दम आदि की आवश्यकता होती है; ऐसा श्रीरामायण युद्धकाण्ड ११४.१८ में कहा गया है “इन्द्रियाणि पुराजित्वा जितं त्रिभुवनं त्वया” (पहले, आपने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की और बाद में तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की) और श्रीसहस्रगीति ४.१.९ “पडि मन्नन् पल्कलन् पट्रोडऱुत्तु ऐम्बुलन् वॆन्ऱु”  (भूमि और आभूषणों के प्रति आसक्ति का त्याग करना, पाँचों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना)। “पडि मन्नन् पल्कलन् पट्रोडऱुत्तु ऐम्बुलन् वॆन्ऱु” में मन का नियंत्रण भी समाविष्ट है।

उपासकों को अपने उपासन के लिए अंगों के रूप में शम आदि की आवश्यकता होती है। बृहदारण्यक उपनिषद २.४ में कहा गया है “तस्मादेवं वित् शान्तो दान्तो उपरतस् तितिक्षुः। स्याहियों भूत्वा आत्मन्येवात्मानम् पश्येत्।।”  (अतः जो इस प्रकार जानता है, वह आंतरिक और बाह्य इंद्रियों को नियंत्रित करते हुए, सब कुछ से अलग होकर, सतर्क होकर, आत्मा में परमात्मा को देखे) और तिरुच्चन्द विरुत्तम् ७६ “पुन्पुल वऴियडैत्तु अरक्किलच्चिनै सॆय्दु नन्पुल वऴि तिऱन्दु ज्ञान नऱ्-चुडर् कोळी।“ (इंद्रिय विषयों में आसक्त इंद्रियों के मार्ग को बंद करना, इंद्रिय विषयों की नीच प्रकृति पर विचार करना, साथ ही उनके निशानों को मिटाना, इंद्रियों के मार्ग को साम्राज्य की ओर चमकाना, ज्ञान की किरण को प्रकाशित करना)।

प्रपन्नों के लिए उन्हें योग्य बनने हेतु शम आदि की आवश्यकता होती है; बृहदारण्यक उपनिषद २.४ में कहा गया है एकान्तीतु विनिश्चित्य देवता विषयान्तरैः। भक्त्युपायम् सम्भव कृष्ण प्राप्तौ कृष्णैक साधनः।।  (एक परमेकांतिक (बहुत उन्नत भक्त) को भक्ति योग को अन्य देवताओं और सांसारिक सुखों के समान मानना ​​चाहिए और कृष्ण को साधन के रूप में मानना ​​चाहिए और केवल ऐसे कृष्ण को प्राप्त करना चाहिए) और तिरुच्चंद विरुत्तम् ९५ अडक्करुम् पुलङ्गळ् ऐन्दडक्कि आसैयमवै तॊडक्कऱुत्तु वन्दु निन् तॊऴिऱ्कणिन्ऱ ऎन्नै नी विडक्करुदि मॆय्सॆयादु मिक्कोर् आसैयाक्किलुम् कडऱ्किडन्द निन्नलावोर् कण्णिलेन् ऎम् अण्णले(आपने मेरी इंद्रियों को नियंत्रित किया जिन्हें नियंत्रित करना कठिन है सांसारिक सुखों के प्रति मेरी आसक्ति को पूर्णतया समाप्त कर दिया और मैं आपके लिए कैंकर्य करने के परम लक्ष्य में स्थिर रहा हूँ। हे भगवान! भले ही आप मुझे सांसारिक सुखों में संलग्न करके मुझे त्याग दें, आप जो दयापूर्वक मेरे कल्याण के लिए क्षीर सागर में लेटे हुए हैं, मेरे पास आपके अतिरिक्त कोई अन्य नियंत्रक नहीं है)।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/14/srivachana-bhushanam-suthram-99-english/

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