श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

जब उनसे पूछा जाता है कि, “ये सब मोह के कारण घटित हुए हैं; जो कुछ अज्ञान/मोह के कारण घटित होता है वह वांछित नहीं है। तो ये कैसे वांछित हैं?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक उत्तर देते हैं।

सूत्रं – ९१

ज्ञान विपाक कार्यमायन अज्ञानत्ताले वरुमै ऎल्लाम् अडिक्कऴञ्जु पॆरुम्।

सरल अनुवाद 

वे विषय जो अच्छी तरह से परिपक्व ज्ञान के  प्रभाव‌ से जो अज्ञान के कारण अर्जित होते हैं, वे अत्यंत मूल्यवान हैं।

टिप्पणी: कऴञ्जु उच्च मूल्य को दर्शाता है।

व्याख्या 

ज्ञान  …

ज्ञान विपाक

जैसा कि रामानुस नूट्रन्दादि में कहा गया है “ज्ञानम् कनिन्द नलम्” (भक्ति जो ज्ञान की परिपक्व अवस्था है) – भक्ति जो अत्यधिक उन्नत ज्ञान की अवस्था है।

ऐसी भक्ति का परिणाम  …

अज्ञानम्

उपयुक्त और अनुपयुक्त विषयों के बीच भेदभाव करने की क्षमता का अभाव जो अत्यधिक भक्ति के कारण होता है; विशेष कार्य जो ऐसी क्षमता के अभाव के कारण होते हैं।

अडिक् कऴञ्जु पॆरुम्

सबसे उत्तम। इसका तात्पर्य है कि कर्म के कारण होने वाला अज्ञान निकृष्ट है [जबकि अत्यधिक भक्ति के कारण होने वाला अज्ञान श्रेष्ठ है]।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/28/srivachana-bhushanam-suthram-91-english/

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