श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
जब उनसे पूछा गया कि, “क्या ऐसे कोई [लक्ष्मण] नहीं है जिसने श्रीरामायण किष्किन्धा काण्ड ४.१२ के अनुसार कहा, ‘गुणैर्दास्यम् उपागतः’ (श्रीराम के विषय में लक्ष्मण कहते हैं कि मैं उनके गुणों से अभिभूत होकर उनकी सेवा कर रहा हूँ)?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं।
सूत्रं – १११
गुणकृत दास्यत्तिलुम् काट्टिल् स्वरूप प्रयुक्तमान दास्यमिऱे प्रधानम् ।
सरल अनुवाद
भगवान के गुणों को देखकर प्राप्त की गई दासता से भी अधिक, स्वयं के वास्तविक स्वरूप पर आधारित दासता प्रमुख है।
व्याख्या
गुणकृत दास्यत्तिलुम् …
गुण कृत दास्यम्
उनके गुणों द्वारा जीता हुआ सेवक बनना।
स्वरूप प्रयुक्तमान दास्यम्
शेषत्व (सेवक) से ही पहचाने जाने वाले आत्मा के वास्तविक स्वरूप को देखकर सेवक बनना।
यद्यपि वास्तविक स्वरूप इस प्रकार है, क्योंकि भगवान में शुभ गुण भरपूर हैं अतः ऐसे गुणों के कारण दासता भी विद्यमान रहेगी; इसीलिए लक्ष्मणजी भी जो अपने वास्तविक दासत्व स्वभाव के कारण सेवक हैं उन्होंने दयापूर्वक ऐसा कहा। तथापि, क्योंकि गुणों के कारण अर्जित दासता आकस्मिक है इसलिए वह गौण होगी और क्योंकि वास्तविक स्वभाव के कारण अर्जित दासता स्वाभाविक है इसलिए वह प्राथमिक होगी; इसीलिए श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इसकी व्याख्या करते हुए ऐसे प्रसिद्ध प्रधानता प्रकट करते हैं।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/26/srivachana-bhushanam-suthram-111-english/
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