प्रपन्नामृत – अध्याय ५१
यतिराज का पुन: श्रीरंगम् लौट आना
🔹श्रीवैष्णव द्वेषी राजा चौल नरेश ने महापुर्ण स्वामीजी एवं कुरेश स्वामीजी को नेत्रहीन बनाने के पश्चात् राज्य के सभी श्रीवैष्णव मन्दिर तोड़ना प्रारंभ करदिया।
🔹श्री रंगनाथ भगवान का मन्दिर तोडने के लिये जब वह सेना सहित जा रहा था तब उसके कण्ठमें कीड़े पड़ गये और उदरव्याधि हो गयी। इन दोनों व्याधियोंसे उसकी मार्गमें ही मृत्यु होगयी।
🔹यह समाचार प्राप्त होनेपर यतिराज नृसिंह भगवान तथा सम्पतकुमार भगवान से आज्ञा लेकर श्रीरंगम् जाने के लिये तैय्यार हुये।
🔹यादवाद्रि निवासी सभी शिष्य समुदाय को सांत्वना दी।
🔹यतिराज के वियोग से दुखित शिष्योंने यतिराज का विग्रह बनानेकी सम्मति माँगी।
🔹यतिराज ने सम्मति देते हुये आज्ञा प्रदान की की “सभी लोग मुझमें जितना प्रेम रखते हैं उतना ही प्रेम इस विग्रहमें रखकर परस्पर प्रेमपुर्वक संगठित होकर रहें।
🔹जैसे श्री राम के १४ वर्ष बाद लौटनेपर अयोध्यावासियोंने स्वागत किया था उसी प्रकार यतिराज के १२ वर्ष बाद लौटनेपर श्रीरंगम वासियोंने स्वागत किया।
🔹यतिराज जब श्री रंगनाथ भगवान का दर्शन करने आये तो रंगनाथ भगवान ने कृमिकण्ठ के उत्पत्ति के लिये पश्चात्ताप करते हुये यतिराज का स्वागत तथा बहुमान किया।
🔹यतिराज ने कुरेश स्वामीजी के घर आकर कुरेश स्वामीजी को हृदय से लगाया।
🔹नगरवासियोंने बताया की दक्षिण चित्रकूट के गोविन्दराज भगवान के उत्सव विग्रह को कृमिकण्ठ ने नष्ट करना चाहा तो अर्चकोंने गुप्त रूप से उत्सव विग्रह को वेंकटाचल पहुँचाया।
🔹जब कृमिकण्ठने मूल विग्रह को नष्ट करना चाहा तो तिल्या नामक वैश्या ने राजा को अपने सौंदर्य से मुग्ध बनाकर मूल विग्रह को भी वेंकटाचल पहुँचाया।
🔹यह समाचार सुनकर यतिराज ने शीघ्र वेंकटाचल आकर तिरुपतिमें गोविन्दराज भगवान की प्रतिष्ठा कराई और उस भक्त वैश्या की स्मृतिमें भगवान का नामकरण “तिल्य गोविन्दराज” ऐसा किया।
🔹यतिराज पुन: श्रीरंगम् लौट आये।