प्रपन्नामृत – अध्याय ६८

🌷 श्रीयतिराज का वैकुण्ठ गमन 🌷

🔹वैकुण्ठ गमन से पुर्व श्री यतिराज ने श्री पराशर भट्ट स्वामीजी को श्रीरंगेश के दास्यसाम्राज्य का राजा बनाया।

🔹श्री रंगनाथ भगवान की सन्निधीमें श्री पराशर भट्टार्य को तीर्थ शठकोप दिलवाकर समस्त श्रीवैष्णवोंको कहा, “ये रंगनाथ भगवान के पुत्र हैं और श्रीवैष्णव दर्शन को बढानेवाले तथा आपके रक्षक हैं।”

🔹तत्पश्चात श्री यतिराज पराशर भट्टार्य को सभी विद्वानोंके सन्मुख बोले, “पश्चिम दिशा में वेदान्ति नामक विद्वान है जिसे आप अतिशीघ्र शास्त्रार्थ में पराजित करते हुये अपने सिद्धान्त में दीक्षित कीजिये।”

🔹तदनन्तर सबसे क्षमा प्रार्थना करके गद् गद् कण्ठ होकर श्री यतिराज ने श्री गोविन्दाचार्य के अंकमें सिर रखा और श्रीआन्ध्रपुर्णाचार्य के अंकमें चरण रखकर सोगये।

🔹भृगुवल्ली, ब्रह्मवल्ली तथा सभी दिव्य प्रबन्धों के पाठ होनेपर श्री महापुर्णाचार्य स्वामीजी के चरणारविंदो का ध्यान करते हुये श्रीयामुनाचार्य की चरणपादुका आगे रखकर स्वयं कपाल भेदन कर ब्रह्मरंध्र के मार्ग से शरीर त्याग कर वैकुण्ठ पधार गये।

🔹वह दिवस था माघ शुक्ल दशमी।

🔹उस समय आकाशवाणी हुयी की साक्षात धर्म भूलोक से चल बसे।

🔹श्री दाशरथि, श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य, श्री गोविन्दाचार्य, श्री कुरेशाचार्य ने प्रधान रुपसे सभी संस्कार सम्पन्न किये।

🔹पुत्राभिमान रखने के कारण श्री कुरेशाचार्य स्वामी ने सभी ब्रह्ममेधादि चरम कैंकर्य विस्तारपुर्वक तथा विधिवत् सम्पन्न किये।

🔹तत्पश्चात श्री गोविन्दाचार्य प्रचार प्रसार करने लगे तथा श्री यतिराज के वियोग में कुछ समय के बाद परमधामको चले गये।

🔹श्रीपराशर भट्टर ने श्री गोविन्दाचार्य का विधिवत् चरम कैंकर्य सम्पन्न किया।

🔹इसके बाद श्री रंगनाथ भगवान के पुत्र श्री पराशर भट्टार्य सर्वत्र श्री रामानुज सिद्धान्त का प्रचार करते हुये बिराजें।

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