श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
श्रीकृष्ण का श्रीगोकुल में बहुत अच्छे से पालन-पोषण किया जा रहा था। माता यशोदा, श्रीनन्दगोप और गोपाङ्गनाऐं विधिपूर्वक रक्षा कर रहीं थीं।
किसी प्रकार से कंस को यह पता चल गया कि यही श्रीकृष्ण हैं जो उसका वध कर देंगे। उसने सोचा कि किसीभी प्रकार से अपने राक्षस मित्रों की सहायता से वह कृष्ण को मार देगा। सबसे पहले उसने पूतना नामक बाल-घातिनी, दुष्टा, राक्षसी को बुलाया और कहा “तुम गोकुल जाओ और कृष्ण का वध कर दो, जो इस समय वहाँ है।” पूतना ने राक्षसी रूप के स्थान पर यशोदा जी के समान दिव्य रूप धारण किया और श्रीकृष्ण के पास गोकुल पहुँच गई। इधर यशोदा जी बालकृष्ण को सुलाकर अपना कार्य समाप्त करने में व्यस्त हो गई। अब पूतना भी वहाँ पहुँच गयी जहाँ बालगोपालकृष्ण थे, उनका वध करने के उद्देश्य से पूतना ने पहले से ही अपने कुच पर विष लगा लिया जिससे कि वह अपना दुग्ध पान कराने से उनका वध कर देगी।
बालकृष्ण को भी पूतना के आगमन का आभास हो गया, किसी उचित युक्ति से मैं उसका वध कर दूँगा ऐसा विचार किया। राक्षसी पूतना माता यशोदा के समान दिखती थी इसलिए किसी को कोई संदेह नहीं हुआ। उसने आते ही बालगोपाल को अपनी गोद में उठा लिया और लाड़ लड़ाने लगी। जैसे ही राक्षसी ने अपना विष से लिप्त स्तन परम शिशु के मुख में दिया तो बालकृष्ण दूध का सेवन करने के साथ उसके प्राण वायु भी चूसने लगे। वह राक्षसी असह्य पीड़ा के साथ “हा” चिल्लाती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी और मृत्यु को प्राप्त हुई। यह देख कर माता यशोदा ने दौड़कर बालक को उठाया और वक्षस्थल से लगा लिया।
इस लीला के अमृत रस का आऴ्वारों ने कई स्थानों पर आनन्द लिया। पूतना परिचय देते हुए “पेय्”, “पेय्च्चि” और “पूतनै” शब्दों का प्रयोग किया, उसके क्रूर कृत्य से भयभीत हो गए।
आइए इस लीला के अद्भुत सार को जानें:-
- श्रीरामावतार में एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) ने पहले ताडका नामक राक्षसी का वध किया, यहाँ श्रीकृष्णावतार में पहले राक्षसी पूतना का वध किया।
- प्रेम का अभिनय करने वाली राक्षसी पूतना का बालकृष्ण ने भी प्रेम का अभिनय करते हुए दुग्ध पान कर लिया।
- यद्यपि पूतना ने श्रीकृष्ण के लिए विष अर्पित किया, उसने वह केवल कृष्ण के लिए रखा था। तो भगवान कृष्ण ने उत्सुकता से उसे स्वीकार किया क्योंकि जब कोई केवल उनके लिए मानकर कुछ अर्पित करे, तो वे उसे अवश्य स्वीकारते हैं।
- बालकृष्ण राक्षसी का वध न भी करते परन्तु वह विषैले विचार के साथ आई और स्वाभाविक उसे वध करना पड़ा।
- इसमें कोई विषमता नहीं कि एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) श्रीकृष्ण के प्रति कोई प्रेम का अभिनय करता है, परन्तु एम्पेरुमान् उस भाव को समझते हुए छिन्न-भिन्न कर देते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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