श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
अध्ययन याने पढ़ना/सीखना/दोहराना। वेदम को आचार्य की सन्निधि में उनके द्वारा सुनकर दोहराया जाता है। वेद मंत्रों को भी नित्यानुसन्धान के अंतर्गत पारायण किया जाता है। अनध्ययन याने पढ़ाई को रोकना। वर्ष के कुछ दिनों में वेदम का पाठ नहीं होता है। उस समय में शास्त्र के कुछ भाग जैसे स्मृति, इतिहास, पुराणों का अध्ययन किया जाता है। अमावस्या, पूर्णिमा, प्रतिपदा जैसे दिनों में भी वेदम का अध्ययन नहीं किया जाता है। द्राविड वेद (४००० दिव्य प्रबन्ध) को संस्कृत वेद के बराबर माना गया है, दिव्य प्रबन्ध को कुछ समय के लिये पढ़ा/अध्ययन नहीं कीया जाता है।
अनध्ययन काल तिरुक्कार्तिकै दीपोत्सवम् (तमिऴ के कार्तिक मास में कार्तिक नक्षत्र) के अगले दिन से प्रारंभ होता है। सामान्यतः, यह मंदिरों में अध्ययन उत्सव संपन्न होने के बाद अंत होता है। तै हस्तम् (तमिऴ के पौष मास में हस्त नक्षत्र) के दिन घरों में दिव्यप्रबंध अनुसंधान आरंभ करने का एक संप्रदाय है।
नम्माऴ्वार् (श्री शठकोप स्वामी) के परमपद प्राप्ति को महिमामंडित करने के लिए वैकुंठ एकादशी के दिन तिरुवाय्मोऴि (सहस्त्रगीति) का पाठ करके, सर्वप्रथम, इस अध्ययन उत्सव को तिरुमङ्गै आऴ्वार् (कलियन स्वामी) ने इस प्रकार आयोजित किया। तद्पश्चात, श्रीमन्नाथमुनि जी ने सारे आऴ्वारों के प्रबंधों के पाठ करने का नियम बनाया। एम्पेरुमानार् (श्री रामानुज स्वामीजी) ने इस उत्सव को इतर दिव्य देशों में भी आयोजित किया, और उनके बाद के आचार्यों ने इस परंपरा का उत्साहपूर्वक पालन किया।
इस अनध्ययन काल में क्या सीखा जाए और किसके पाठ किया जाए?
एक लघु सूची:
- मंदिरों में साधारणतया, तिरुप्पावै के बदले उपदेश रत्तिन मालै और कोयिल् तिरुवाय्मोऴि/रामानुस नूट्रन्तादि के बदले तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि का अनुसंधान किया जाता है।
- धनुर माह (मार्गशीर्ष/मार्गऴि) में तिरुप्पळ्ळियेऴुच्चि/तिरुप्पावै का अनुसंधान प्रारंभ होता है।
- मंदिरों में अध्ययन उत्सव के समय पूरे ४००० पासुरों (संपूर्ण दिव्य प्रबंध) का एक बार पाठ होता है।
- घरों में अनध्ययन काल में ४००० दिव्य प्रबंध में से पासुरम् का पाठ नहीं किया जाता (मंदिरों के जैसे ही नियम मार्गऴि महीने के लिए- तिरुप्पळ्ळियेऴुच्चि/तिरुप्पावै का पाठ होता है)।
- कोयिल् आऴ्वार् (हमारे घर के भगवान का मंदिर/कपाट) को खोलते समय, हम जितन्ते स्तोत्र (पहले २ श्लोक), “कौशल्या सुप्रजा रामा” श्लोक, “कूर्माधीन्” श्लोक का पाठ करते हुए खोलते हैं (इस नियम का साधारण दिनों में भी पालन करते हैं)। वैसे तो कपाट खोलते समय, आऴ्वारों के पाशुरों का मन में स्मरण/ध्यान करने में कोई नियंत्रण नहीं है।
- इसके अतिरिक्त, हम रहस्य ग्रन्थों को सीखने में संलग्न रहकर उन्हें कंठस्थ कर सकते हैं।
- उसी प्रकार, तिरुमञ्जन् के समय हम सूक्तं के पाठ करने के बाद, “वेण्णै अळैन्द कुणुङ्गुम्” पदिगम् के साथ और कुछ पाशुरों का पाठ करते हैं – अनध्ययन काल में केवल सूक्तं का ही पाठ होता है।
- मंत्र-पुष्प के समय, “चेन्ऱाल् कुडैयाम्” पासुरम् का पाठ होता है। इसके स्थान पर, अनध्ययन काल में “एम्पेरुमानार् दरिसनम् एन्ऱे” पासुरम् का पाठ करते हैं।
- साटृमुऱै के लिए हम उपदेस रत्तिन मालै और तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि के पासुरम् का अनुसंधान करते हैं, न कि “चिट्रम् चिऱुकाले”, “वङ्गक् कडल्” और “पल्लाण्डु पल्लाण्डु” पासुरम्। इसके बाद “सर्व देश दशा काले…” और “वाऴि तिरुनामम्” हमेशा के जैसे।
- पूर्वाचार्यों के स्तोत्र ग्रन्थ जो संस्कृत में हैं और इतर तमिऴ् प्रबंध जैसे ज्ञान सारम्, प्रमेय सारम्, सप्त कातै, उपदेस रत्तिन मालै, तिरुवाय्मोऴि नूट्रन्तादि, आदि सीखने के लिए यह एक उपयुक्त समय है।
- इतना ही नहीं, इस समय में हम हमारे आऴ्वार् आचार्यों के तनियन् (उनका ध्यान श्लोक) और वाऴि तिरुनामम् (उनकी कीर्ति) सीखकर पाठ कर सकते हैं।
अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी
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