श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ७४वें सूत्र से ७६वें सूत्र तक जिसे समझाया गया उसे आगे समझाते हैं।
सूत्रं – ७७
अहङ्कारम् आगिऱ आर्प्पैत् तुडैत्ताल् आत्मावुक्कु अऴियाद पेर् अड़ियान् एन्ऱिऱे।
सरल अनुवाद
जब अहंकार का मैल धुल जायेगा, तब आत्मा को अडियान् (सेवक/दास) नाम से जाना जाएगा।
व्याख्या
अहङ्कारम्…
अहङ्कारम्
अहंकार दो रूपों में है – देहाात्माभिमानम् (शरीर को आत्मा मानना) और स्वातंत्र्यम् (आत्मा को स्वतंत्र मानना)। यहाँ, स्वातंत्र्यम् पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
आर्प्पु
गंदगी कहने का निहित अर्थ है, पर्दा बनकर रहने और आकस्मिक होने का स्वभाव।
तुडैक्कै
इसे पोंछ डालने का अर्थ है एक सदाचार्य के उपदेशों आदि द्वारा इसका नाश करना।
आत्मावुक्कु अऴियाद पेर् अड़ियान्
नाशवान नामों के विपरीत जो किसी की जाति (देवता, मानव, पशु, पक्षी आदि प्रजातियाँ), वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जैसे कुल), आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास जैसी अवस्था) आदि द्वारा प्राप्त किए जाते हैं जो औपाधिक (कर्म जैसे किसी विशेष कारण के आधार पर प्राप्त) हैं, आत्मा का शाश्वत नाम दास/अडियान् है।
इऱे
इसका तात्पर्य यह है कि यह सिद्धांत प्रमाणों (प्रामाणिक शास्त्र प्रमाणों) के माध्यम से अच्छी तरह से स्थापित है। ये हारीत स्मृति में अच्छी तरह से व्यक्त किए गए हैं “दासभूता: स्वत: सर्वे” (सभी आत्माएँ स्वाभाविक रूप से दास हैं) आदि और विष्णुतत्वम् “हरेर् स्वाम्यम्” (हरि स्वामी हैं)।
इसलिए, यह कहने में कोई त्रुटी नहीं है कि दासता चेतन के लिए स्वाभाविक है और स्वतंत्रता आदि आकस्मिक हैं।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/02/srivachana-bhushanam-suthram-77-english/
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