प्रपन्नामृत – अध्याय ४१
धनुर्धरदास का उत्कर्ष
🔹रंगनाथ भगवान के ब्रह्मोत्सव के समाप्ति के दिन भगवान कावेरी स्नान के लिये पधारे तो रामानुजाचार्य भी वहाँ अपने अंतरंग शिष्य धनुर्धरदास के कंधे का सहारा लेकर उपस्थित हुये।
🔹ब्राह्मण शिष्योंने ईर्ष्या द्वेश उच्चकुलाभिमान के वशीभूत होकर यतिराज से इसका कारण पूछा।
🔹यतिराजनें स्पष्ट किया “विद्या, धन, कुल इन तीनोंके मद से रहित धनुर्धरदास सात्विक पुरुष है इसीलिये हमने ऐसा किया।”
🔹इसपर भी उन शिष्योंकी ईर्ष्या कम न हुयी और वे धनुर्धरदास के हार्दिक पवित्र भावोंको न देखकर उन की उपेक्षा, तिरस्कार, अपमान करने लगे।
🔹यह वैमनस्य मिटानेके लिये यतिराज ने एक उपाय सोचा।
🔹अपने एक शिष्य को आज्ञा देकर उन द्वेष करनेवाले ब्राह्मण शिष्योंके सुखते हुये वस्त्रोंको रात्रिमें गुप्तरितीसे फडवा दिये।
🔹प्रात:कालमें खण्डित वस्त्रोंको लेकर उन सभी ब्राह्मण शिष्योंका आपसमें भारी झगड़ा हुवा।
🔹कुछ दिनोंबाद यतिराज ने उन ब्राह्मण शिष्योंको एकांतमें बुलाकर आज्ञा दी की “रात्रिमें धनुर्धरदास मठमें होंगे तो उनके घर जाकर सोती हुयी हेमाम्बा के सभी आभूषण चुरा लावो”
🔹वें शिष्य जाकर आभूषण चुराने लगें तो हेमाम्बा को समझगया की कोई श्रीवैष्णव अपने आभूषण चुरा रहा है।
🔹यह आभूषण अवश्य भगवान की सेवा के लिये आवश्यक होंगे यह सोचकर हेमाम्बाने सोनेका बहाना करके उनका विरोध नही किया।
🔹एक तरफ के आभूषण निकालनेके बाद उन्होने उन श्रीवैष्णवोंकी सहायता करने हेतु करवट बदली।
🔹करवट बदलतेही डरकर वे श्रीवैष्णव भागगये और यतिराज के पास आगये।
🔹यतिराजने अब धनुर्धरदास को घर जानेकी आज्ञा दी और पीछे पीछे उन ब्राह्मण शिष्योंको पती पत्नी का वार्तालाप छिपकर सुननेके लिये भेजदिया।
🔹घर आकर आधे शरीरको आभूषण रहित देखकर धनुर्धरदास ने कारण पुछा तो हेमाम्बा ने सारा वृतांत सुनाया।
🔹धनुर्धरदासने नाराज होकर कहा की तुम्हारे कारण वे डरके भागगये और बचे हुये आभूषण भगवान की सेवामें नही लग सकें।
🔹यह वार्तालाप शिष्योंने यतिराज को सुनाया तब यतिराज बोले की, “आपका वस्त्र थोडासा फाडलिया तो इतना कलह किया और धनुर्धरदास हेमाम्बा की उदारता देखो।”
🔹वे शिष्य लज्जित हुये और उन्होने धनुर्धरदास के प्रति ईर्ष्यामय व्यवहार बंद करदिया।
🔹धनुर्धरदास की आचार्यनिष्ठा कैंकर्यनिष्ठा आदर्श चरित्र का वर्णन करनेमें इतिहास असमर्थ है।
🔹इसी कारण यतिराज प्रतिदिन कावेरी स्नान के लिये जाते आते समय इनका कन्धा पकडते थे।