श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
इस प्रकार कृष्ण वृन्दावन में वास कर रहे थे तब कुछ और असुरों को कृष्ण को मारने के लिए कंस द्वारा भेजा गया। कृष्ण ने सहज ही उन सब का वध कर दिया। आइए उन लीला क्षणों का आनन्द लें।
अरिष्टासुर अत्यन्त क्रूर विशाल बैल के रूप में श्रीकृष्ण और बलराम को मारने के लिए आया। जब वह श्रीकृष्ण की ओर तेजी से आया, तभी श्रीकृष्ण ने उसको उसके पैरों से पकड़कर धरती पर पटककर मार डाला।
एक केशी नामक राक्षस विशाल अश्व के रूप में आया। यह देखकर नारदजी भयभीत हो गए “श्रीकृष्ण उनसे नहीं बच सकते” यह सोचकर मूर्च्छित हो गये। जैसे ही केशी श्रीकृष्ण को मारने के विचार से पास आया, श्रीकृष्ण ने उसका मुख पकड़कर उसको दो भागों में चीर कर मार डाला। कृष्ण के द्वारा केशी के वध की सूचना मिलने पर नारदजी को चेतना आई। आऴ्वारों ने इस लीला कि आनंद प्राप्त किया। पोय्गै आऴ्वार् (श्री सरोयोगी स्वामी जी) मुदल् तिरुवन्दादि में आनन्दित होकर कहते हैं “मा वाय् पिळन्दु” (अश्व का मुख चीरते हुए)। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मॊऴि में कहते हैं “तुरङ्गम् वाय् पिळन्दानुऱै तॊलैविल्लिमङ्गलम्” (तॊलैविल्लिमङ्गलम् में उसका परमधाम है जिसने घोड़े का मुख चीर दिया)। कुलशेखर आऴ्वार् पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं कि “माविनै वाय् पिळन्दु उगन्द मालै” (भगवान जिसने घोड़े का मुख चीर दिया और प्रसन्न हुए)। आण्डाळ् ने अपने तिरुप्पावै में कहा “मा वाय् पिळन्दानै” (वह जिसने घोड़े का मुख चीर दिया)। तिरुमङ्गै आऴ्वार् तिरुनेडुन्दाण्डगम् में कहते हैं,”मा कीण्ड कैत्तलत्तु ऎन् मैन्दा” (नित्य किशोर, कोमल हाथों वाले भगवान जिन्होंने घोड़े का वध कर दिया) इन पासुरों में तुरङ्गम् और मा शब्द अश्व (घोड़े) को दर्शाते हैं।
कंस के द्वारा भेजा गया व्योमासुर नामक राक्षस एक दिन आया और जब श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ खेल रहे थे उसी समूह में सम्मिलित हो गया। वह एक के बाद एक ग्वाले को ले गया और अन्त में श्रीकृष्ण को ले जाने की योजना बनाई। श्रीकृष्ण ने जान लिया और ग्वाले के रूप में उस राक्षस को मार डाला।
इस प्रकार, श्रीगोकुल में और वृन्दावन में कई राक्षस आए और श्रीकृष्ण ने उनका वध कर दिया।
सार:-
- जब राक्षस वृत्ति के लोग किसी भी रूप में या वेश धारण कर श्रीकृष्ण के पास आते हैं तो वह सहज ही उनको जान लेते हैं और उनका वध कर देते हैं।
- कोई भी भयानक परिस्थिति भगवान के लिए भयानक नहीं होती, क्योंकि कोई भी उनका तनिक भी क्षति नहीं पहुँचा सकता। परन्तु भगवान के भक्तों के लिए भयानक हो सकते हैं, क्योंकि भगवान के लिए कोई भय होता है तो भक्त उसे सहन नहीं करते। भगवान ऐसे भय को दूर करते हैं जो भगवान के स्वयं के लिए हों और साथ में अपने भक्तों के द:खों को दूर करते हैं।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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