श्रीवचन भूषण – अवतारिका – भाग १ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम: श्रीवचन भूषण​ << तनियन् तिरुमन्त्र सम्पूर्ण वेद का सार हैं। तिरुमन्त्र में ३ शब्द ३ सिद्धान्तों को प्रकाशित करता हैं (अनन्यार्ह शेषत्व – केवल भगवान के शेष होकर रहना, अनन्य शरणत्व – उन्हीं के सर्वविध शरण रहना, अनन्य भोग्यत्व – भगवान के … Read more

श्रीवचन भूषण – तनियन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम: श्रीवचन भूषण​ श्रीवचन भूषण का पाठ / अध्ययन करने से पूर्व निम्म तनियन का पाठ करने कि प्रथा हैं। हम अपने गौरवशाली आचार्य और सभी के हित के लिये उनके साहित्यिक योगदान को समझने हेतु उन्हें संक्षेप में देखेंगे। पहिले श्रीशैलेश दयापात्रं … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०७ श्रीमद उभयवेदान्ताचार्य काञ्चीपुरम् के श्रीप्रतिवादि भयङ्करम् अण्णङगराचार्य द्वारा दी गई व्याख्या  यह श्लोक श्रीशैलेश दयापात्रम् कृपाकर श्रीरङ्गनाथ भगवान ने रचा हैं। हम यह पुष्टि करेंगे कि यह भगवान कि वाणी हैं। यह श्रीरङ्गनाथ भगवान हीं थे जिन्होंने श्रीराम और श्रीकृष्ण के … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०६ अब यतीन्द्र और यतीन्द्र प्रवणर के मध्य में समानता:  श्रीरामानुज स्वामीजी श्रीपेरुम्बुतूर में अवतरित हुए जो श्रीरङ्गम् के उत्तर दिशा में स्थित हैं, ताकि संस्कृत और तमिऴ् भाषा दोनों को उजागर किया जा सके। उनके अवतार के कारण “नारणनैक् काट्टिय वेदम् … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०५ जैसे प्रणवम् [ॐ] को “यद्वेदादौस्वरः प्रोक्तो वेदान्तेच प्रतिष्ठितः” कहा जाता हैं (प्रणवम का पाठ वेदों के पाठ के प्रारम्भ और अंत में किया जाता हैं), यह तनियन [श्रीशैलेश दयापात्रं:] जिसकी यहाँ रेखांकित की गई महिमा हैं और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के स्तुति … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०४ यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – अनुबंधम्  श्रीशैलेश मन्त्र का वैभव  श्रीशैलेश दयापात्रं धीभक्तयादिगुणार्णवम् । यतीन्द्रप्रवणं वन्दे रम्यजामातरं मुनिम् ॥  यह सर्वविदित हैं कि श्रीरङ्गनाथ भगवान ने कृपाकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पर उनके शिष्य के रूप में इस तनियन् कि रचना किये। हमारे लिये यह … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०३ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी वाऴित्तिरुनामम्   इप्पुवियिल् अर्ङ्गेसर्क्कु ईडळित्तान् वाऴिये   एऴिल् तिरुवाय्मोऴिप्पिळ्ळै इणैयडियोन् वाऴियेऐपसियिल् तिरुमूलत्तु अवतरित्तान् वाऴिये   अरवरसप्पेरुञ्जोदि अनन्तन् एन्ऱुम् वाऴियेएप्पुवियुम् श्रीशैलम् एत्तवन्दोन् वाऴिये    एरारुम् एदिरासर् एनविदित्तान् वाऴियेमुप्पुरिनूल् मणिवडमुम् मुक्कोल्तरित्तान् वाऴिये   मूदरिय मणवाळमामुनिवन् वाऴिये नाळ् पाट्टु चेन्दमिऴ् वेदियर् चिन्दै तेळिन्दु चिऱन्दु मगिऴ्न्दिडु नाळ्    सीरुलगारियर् सेय्दरुळ् न​ऱ्कलै तेसुपोलिन्दिडु नाळ्मन्दमदिप्पुवि मानिडर् … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०२ शिष्य दृढ़ता से श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के साथ जुड़े हुए हैं  इस प्रकार सभी शिष्य जो श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण हुए है वें आचार्य अभिमान निष्ठा (आचार्य के प्रति श्रद्धा और दृढ़ता के साथ रहना) के साथ रहते थे, … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०१ एऱुम्बियप्पा का आग्रह  फिर एऱुम्बियप्पा को भी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य श्रीवैकुण्ठ पधारने के समाचार प्राप्त हुआ और जैसे इस श्लोक में कहा गया हैं  वरवरमुनि पतिर्मे ततपदयुगमेव शरणमनुरूपम्।तस्यैव चरणयुगळे परिचरणं प्राप्यमिति ननुप्रताम्॥ (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी दास के स्वामी हैं; उनके दिव्य … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १०१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग १०० वानमामलै जीयर् स्वामीजी कृपाकर लौटते हैं  तत्पश्चात वानमामलै जीयर् स्वामीजी उत्तर भारत कि यात्रा से लौटे; जब वें तिरुमला के निकट थे तब उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के श्रीवैकुण्ठ को पधारने के समाचार सुने। वें निराश महसूस कर रहे थे। वें तिरुमला … Read more