कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५० – पांडव दूत – भाग २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << विदुर पर कृपा कौरवों की सभा में जो हुआ आइए उसका आनन्द लें।जब कृष्ण दूत बनकर वहां पधारे, तब धृतराष्ट्र ने सोचा कि वह कृष्ण को बहुत-सा धन देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लेंगे परन्तु तुरन्त ही उनको अनुभूति … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४९ – विदुर पर कृपा

श्री:श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << पांडव दूत – भाग १ पाण्डु और विदुर धृतराष्ट्र के अनुज थे। विदुर कृष्ण के बहुत श्रद्धा रखते थे। हमारे सम्प्रदाय में वे इतने महान हैं कि उनको विदुराऴ्वान् के नाम से जाना जाता है। जब कृष्ण पाण्डवदूत के रूप में … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४८ – पांडव दूत – भाग १

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << द्रौपदी का कल्याण कृष्ण द्वारा प्रकट किए सबसे अद्भुत गुणों में से एक है आश्रित पारतन्त्र्य- भक्तों के वचनों का पूर्णतः पालन करना। इन गुणों को हम दो प्रकार से जान सकते हैं – प्रथम, पांडवों के लिए दूत बनकर … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४७ – द्रौपदी का कल्याण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << सुदामा का सत्कार युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात् दुर्योधन माया द्वारा निर्मित महल में चारों ओर घूमने लगा और महल की अद्भुत वास्तुकला को देखकर मन्त्रमुग्ध हो गया। पांडवों के इस महल को देख उनके भाग्य से … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४६ – सुदामा का सत्कार

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << शाल्व और दन्तवक्र का वध कृष्ण अपने सहपाठी सुदामा के साथ सांदीपनी मुनि के पास अध्ययन करते थे। उन्हें कुचेला के नाम से जाना जाता है। कृष्ण और सुदामा घनिष्ठ मित्र थे। वे सपत्नी दरिद्रता का जीवन यापन कर रहे … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४५ – शाल्व और दन्तवक्र का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << शिशुपाल का वध कृष्ण जब रुक्मिणी जी का हरण कर रहे थे तब शाल्व राजा उनसे युद्ध में हारकर भाग गया। उसने कहा था कि किसी भी प्रकार से वह कृष्ण और यादवों का विनाश करेगा। एक वर्ष तक उसने … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४४ – शिशुपाल का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद् वरवरमुनये नमः  श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << जरासन्ध का वध युधिष्ठिर ने कृष्ण की उपस्थिति में राजसूय यज्ञ आरम्भ किया। यज्ञ में बहुत ऋषियों और विद्वानों को सम्मिलित किया। यज्ञ में प्रथम सम्मान किसको दिया जाए यह प्रश्न उठा। तत्क्षण सहदेव ने दृढ़ता से स्पष्टीकरण किया, “सर्वश्रेष्ठ … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४३ – जरासन्ध का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << द्वारका में जीवन और नारदजी का आनंद एक बार नारदजी द्वारका जी गये। कृष्ण उनके सत्कार के लिए आगे आए और उनकी स्तुति, सेवा की। वे सर्वत्र भ्रमण करते हैं इसलिए कृष्ण ने उनसे पूछा, “पांडव कैसे हैं?” उन्होंने उत्तर … Read more

कृष्ण लीलाएं और उनका सार – ४२ – द्वारका में जीवन और नारद जी का आनन्द

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << पौण्ड्रक और सीमालिका का वध साम्ब कृष्ण और जाम्बवति के पुत्र थे। लक्ष्मणा, जो दुर्योधन की पुत्री थी के स्वयंवर के समय उसने हरण कर लिया। यह देख कौरव बहुत क्रोधित हुए और विशाल सेना सहित साम्ब पर आक्रमण किया। साम्ब अकेले … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ४१ – पौण्ड्रक और सीमालिक का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः। श्रीमते रामानुजाय नमः। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। श्रृंखला << बाणासुर का वध वासुदेव कृष्ण की महिमा को देखकर, पौण्ड्रक नामक करुष राजा ने स्वयं को सच्चा और सर्वश्रेष्ठ स्वामी मानने लगा। वह कृष्ण की भांति शंख और चक्र लेकर घूमने लगा। एक बार उसने श्रीद्वारिका में विराजमान कृष्ण को दूत … Read more