श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं कि ये शम और दम उन लोगों के लिए आवश्यक हैं जो सांसारिक सुख चाहते हैं और साथ ही उन लोगों के लिए भी जो मोक्ष चाहते हैं। सूत्रं – ९९ इदुदान् ऐश्वर्य कामरक्कुम्, … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका इस प्रकार, आरोही क्रम में शम और दम की प्राप्ति के फल की क्रमबद्ध प्राप्ति को समझाने के पश्चात, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक अवरोही क्रम में इन विषयों में से प्रत्येक के शाश्वत होने का कारण बताते हैं। सूत्रं … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका तत्पश्चात्, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक शम और दम प्राप्त करने पर होने वाले परिणामों का क्रम समझाते हैं। सूत्रं – ९७ इवै इरण्डुम् उण्डानाल् आचार्यन् कैपुगुरुम्; आचार्यन् कैपुगुन्दवाऱे तिरुमन्त्रम् कैपुगुरुम्; तिरुमन्त्रम् कैपुगुन्दवाऱे ईश्वरन् कैपुगुरुम्; ईश्वरन् कैपुगुन्दवाऱे “वैगुन्द मानगर् मट्रदु … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने यह समझाने के पश्चात यह स्पष्ट किया कि भगवान के प्रति इच्छा ही सभी श्रेष्ठ गुणों का मुख्य कारण है और सांसारिक विषयों से विरक्त होने के गुण का प्रमाण दिया। जब उनसे इसका कारण … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस सिद्धांत (भगवान के प्रति महान इच्छा जो उत्तम गुणों की ओर ले जाती है) के लिए शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सूत्रं – ९५ “मऱ्-पाल् मनम् सुऴिप्प”, “परमात्मनि तो रक्तः”, “कण्डु केट्टु उट्रु मोन्दु”। सरल … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं ९४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “क्या भगवान के प्रति ऐसी महान इच्छा भगवान की महानता के अधीन नहीं है? क्या शम (मानसिक संतुलन), दम (आत्मसंयम) आदि जैसे श्रेष्ठ आत्मगुण योग्यता को परिष्कृत करते‌ हैं?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी बताते हैं … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका यह समझाने के पश्चात कि मडल् आदि कर्म सिद्धोपाय (भगवान ही इसके स्थापित साधन हैं) के लिए बाधा नहीं हैं, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं कि ये सिद्धोपाय के समतुल्य हैं। सूत्रं – ९३ साध्य समानम्, विळम्बासहम् ऎन्ऱिऱे … Read more

శ్రీ వచన భూషణము – సూత్రము 3

శ్రీ వచన భూషణము << సూత్రము 2 అవతారిక“వేదము యొక్క ఉత్తర భాగమును నిశ్చయించునట్టి ఈ రెండింటికి భేదము ఉండునా?” అన్న సందేహమునకు పిళ్ళై లోకాచార్యుల వారు జవాబును ప్రతిపాదించుచున్నారు.వేరొక అర్ధము – ఒకటే విభాగమును గురించినవి అయిన రెండు ఉపబ్రహ్మణములలో ఏది ప్రబలమైనదో చెప్పదలచి తామే స్వయముగా తలచి ప్రసాదించుచున్నారు. సూత్రముఇవై యిరణ్డిలుమ్ వైత్తుక్కొణ్డు ఇతిహాసమ్ ప్రబలమ్ సంక్షిప్త వ్యాఖ్యానముఈ రెండింటిలో ఇతిహాసము ప్రబలము వ్యాఖ్యానముఇవై యిరణ్డిలుమ్…అనగా ఉత్తర భాగములో ప్రతిపాదింపబడిన విషయమును సంశయము లేకుండా … Read more

శ్రీ వచన భూషణము – సూత్రము 2

శ్రీ వచన భూషణము << సూత్రము 1 అవతారికపైన చెప్పిన వాటిలో ఏది వేదములోని ఏ భాగముల యొక్క అర్ధమును నిశ్చయించును అనునది పిళ్ళై లోకాచార్యుల వారు కృప చేయుచున్నారు. సూత్రము – 2స్మృతియాలే పూర్వభాగత్తిల్ అర్ధమ్ అఱుతి యిడక్కడవతు, మత్తై ఇరణ్డాలుమ్ ఉత్తర భాగత్తిల్ అర్ధమ్ అఱులి యిడక్కడవతు. వేదము యొక్క పూర్వ భాగపు అర్ధములను స్మృతిచేత నిశ్చయించుకొనవలెను. ఉత్తర భాగము (అనగా వేదాంతము లేదా ఉపనిషత్తులు) యొక్క అర్ధములను ఇతిహాసములు మరియు పురాణములతో నిశ్చయించవలెను. … Read more

శ్రీ వచన భూషణము – సూత్రము 1

శ్రీ వచన భూషణము << అవతారిక – భగాము 3 అవతారిక యధార్ధముగా ఉన్నదానిని ఉన్నట్లు తెలుసుకొనుటను ‘ప్రమ’ అని అంటారు. అట్టి జ్ఞానము కలవాడు ‘ప్రమాత’ అంటే ఉన్నదానిని ఉన్నట్టు తెలుసుకొనిన వాడు. అలా అతను తెలుసుకొనుటకు సాధనము ప్రమాణము. ప్రత్యక్షముతో ఆరంభమగు ప్రమాణములు ఎనిమిది విధములు. ప్రత్యక్షం ఏకం చార్వాకాః కాణాద సుగదౌ పునః |అనుమానంచ తచ్చాత సాంఖ్య శబ్దంచతే అపి ||అర్ధపత్యా సహైతాని చత్వార్యాహ ప్రభాకరః |న్యాయైక దేసినోప్యేవం ఉపమానం ప్రచక్షతే ||అభవ … Read more