श्रीवचन भूषण – सूत्रं ७१
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस शंका को स्पष्ट करते हैं, “किन्तु, क्योंकि चेतन में कर्तृत्व (कर्ता होना) और भोक्तृत्व (भोक्ता होना) है, जो कि ज्ञानार्थ (ज्ञाता होना) का प्रभाव है, इसलिए वह आत्म-प्रयास में संलग्न होने और आत्म-आनंद की खोज … Read more