प्रपन्नामृत – अध्याय ५८

🌷श्रीकुरेशाचार्य का वैकुण्ठ निवास🌷

🔹श्रीकुरेशाचार्य का वैकुण्ठ जानेका संकल्प सुनकर भी उनकी पत्नी आण्डाल ने विनाविलाप उसे स्वीकार किया।

🔹श्रीकुरेशाचार्य ने अपने दोनों पुत्रोंको बुलाकर कहा की वें गोदारंगेश के शरणमें रहें, श्रीरामानुजाचार्य को रक्षक मानकर अपनी माता की आज्ञापालन करते हुये और श्रीवैष्णवोंकी सेवा करते हुये जीवन व्यापन करें।

🔹ऐसा कहकर उन्होनें अनायासही, सहजता से, बिना किसी प्रयास के अपना शरीर त्याग दिया।

🔹रामानुजाचार्य के आदेशसे पराशर भट्ट ने अपने पिता कुरेशाचार्य का ब्रह्ममेध विधी से संस्कार सम्पन्न कराया।

💢भगवान के लिये समर्पित शरणागत के शरीर का ब्रह्ममेध विधी से ही संस्कार कराना चाहिये – ब्रह्मचिन्तन परायण मुनी

💢हारीत स्मृतिमें कही गयी विधी से महाभागवतोंका ब्रह्ममेध संस्कार होना चाहिये

🔹तत्पश्चात पराशर भट्टने अपने पिता के १२ दिनतक ते सभी कृत्य विधिपूर्वक सम्पन्न किये।

🔹सहस्रगिती,द्राविड वेद आदि का पाठ कराकर पराशर भट्ट ने अपने अनुज सहित श्रीकुरेशाचार्य का वैकुण्ठोत्सव सम्पन्न कराया।

🔹तदनन्तर यतिराज श्री पराशर भट्ट को रंगनाथ भगवान के पास ले आये और भगवान ने पराशर भट्ट को पुत्र रुपमें स्वीकार  किया।

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