श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमदवरवरमुनये नमः
श्री वानाचल महामुनये नमः
श्रीवैष्णव संप्रदाय मार्गदर्शिका
तत्वों को 3 मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है – चित, अचित और ईश्वर।
चित में, वे सभी असंख्य जीवात्मायें समाहित है, जो नित्य विभूति (परमपद- नित्य आध्यात्मिक धाम) और लीला विभूति (संसार – अनित्य भौतिक धाम) दोनों में वास करती है। स्वरुप से जीवात्माएं ज्ञान से निर्मित है और ज्ञान से परिपूर्ण भी है। क्यूंकि सच्चा ज्ञान सदैव वरदान रूप होता है, जब आत्मा सच्चे ज्ञान में स्थित हो तब वह आनंदित रहती है। जीव अनंत है , अजर-अमर है, ईश्वर के शरण भजन से इसका कल्याण होता है। जीवात्माएं तीन वर्गों में विभाजित है – नित्यसुरी (जो सदा के लिए मुक्त है), मुक्तात्मा (जो एक समय संसार बंधन में थी परंतु अब मुक्त है) और बद्धात्मा (जो संसार चक्र में बंधे है)। बद्धात्माओं को पुनः भूभूक्षु (वह जो संसार को भोगना चाहते है) और मुमुक्षु (वह जो मोक्ष प्राप्त करना चाहते है) में वर्गीकृत किया गया है। फिर मुमुक्षु का वर्गीकरण कैवल्यार्थी (जो स्वयं की अनुभूति और स्वयं के भोग की चाहना करते है) और भगवत कैंकर्यार्थी (जो परमपद में भगवान का नित्य कैंकर्य करना चाहते है) के रूप में किया गया है। वृस्तत जानकारी के लिए, कृपया https://granthams.koyil.org/2013/03/06/thathva-thrayam-chith-who-am-i/ पर देखें।
अचित, उन विभिन्न जड़ वस्तुओं का संग्रह है. जो हमारी सकल इन्द्रियों के प्रत्यक्ष है। सम्पूर्ण विनाश के पश्चाद वे अव्यक्त रूप में थी और सृष्टि के समय वे व्यक्त हो गई। वह ईश्वर के परतंत्र है। नित्य विभूति और लीला विभूति दोनों में अचित उपस्थित है। यद्यपि, साधारणतः, अचित (जड़ वस्तुयें) लौकिक संसार में सच्चे ज्ञान को आवरित करता है, परंतु आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में वह सच्चे ज्ञान को सुगम बनता है। अचित को, शुद्ध सत्व (सम्पूर्ण सत्वता, जो परमपद में दिखाई देती है), मिश्र सत्व (सत्वता, जो राग और अज्ञान के साथ मिश्रित है, जिसे मुख्यतः संसार में देखा जा सकता है) और सत्व शून्य (सत्वता का अभाव-जो काल/समय है) इन तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। अधिक जानकारी के लिए, कृपया https://granthams.koyil.org/2013/03/thathva-thrayam-achith-what-is-matter/ पर देखें।
ईश्वर, श्रीमन्नारायण है, जो परमात्मा है और श्रीमहालक्ष्मीजी के साथ नित्य विराजते है। भगवान छः गुणों से परिपूर्ण है, वे है- ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य (वीरता), शक्ति, तेज। यह छः गुण विस्तृत होकर असंख्य दिव्य कल्याण गुणों में परिवर्तित होते है। वे इन सभी असंख्य कल्याण गुणों को धारण करने वाले है। सभी चित्त और अचित उनपर आश्रित है और उनमें व्याप्त है– अर्थात ईश्वर उनके अंदर भी समाये है और उन्हें थामे हुए भी है। ईश्वर एक है और अनेक रूपों में चेतनों की रक्षा करते है। वे सभी के स्वामी है, सभी चित और अचित पदार्थ उन्हीं के आनंद हेतु सृष्टि में है। अधिक जानकारी के लिए, कृपया https://granthams.koyil.org/2013/03/thathva-thrayam-iswara-who-is-god/ पर देखें।
तत्वों में समानताएं:
- ईश्वर और चित (जीवात्माएं) दोनों ही चेतन है।
- चेतन और अवचेतन वस्तुयें दोनों ही ईश्वर की संपत्ति है।
- ईश्वर और अचित दोनों में ही, चेतनों को अपने स्वरूपानुगत परिवर्तित करने का सामर्थ्य है। उदहारण के लिए, अत्यधिक भौतिक गतिविधियों में प्रयुक्त होने वाली जीवात्मा, ज्ञान के संदर्भ में वह जीवात्मा अचित वस्तु के समान ही हो जाती है अर्थात जड़ वस्तु के समान ही ज्ञान से परे है। उसी प्रकार, जब एक जीवात्मा पूर्ण रूप से भगवत (आध्यात्मिक) विषय में लीन होती है, तब वह सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त करके, भगवान के समान सच्चा सुख/ आनंद प्राप्त करती है।
तत्वों के मध्य असमानताएं:
- सर्वोत्तमता, ईश्वर का विशिष्ट गुण है और वे सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान आदि है।
- चित का विशिष्ट गुण है, ईश्वर के प्रति कैंकर्य के विषय में ज्ञान।
- अचित का विशिष्ट गुण है, उसका ज्ञान रहित होना और उनकी उत्पत्ति संपूर्णतः दूसरों के अनुभव के लिए है।
पिल्लै लोकाचार्य स्वामीजी के रहस्य ग्रंथ तत्व त्रय की अवतारिका को पढने के लिए https://granthams.koyil.org/2013/10/aippasi-anubhavam-pillai-lokacharyar-tattva-trayam/ पर देखें।
-अडियेन भगवती रामानुजदासी
आधार – https://granthams.koyil.org/2015/12/thathva-thrayam-in-short/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
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