श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी
सवोर्च्च भगवान अष्ठ भुज, आयुध और कवच के साथ प्रकट हुए । वह ब्रह्मा और उनके यग्न को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पहुंचे थे।
अपने मुख पर एक मुस्कुराहट लेके उन्होंने काली और उसके सहयोगी, क्रूर असुरों को ललकार कर विरुद्ध किया। कुछ हि समय में, जीत और विजय से वे विभूषित हुए। काली को भगा दिया गया था और असुरों का नाश कर दिया गया था।
ब्रह्मा के लिए, वे तत्क्षण पहुंचे और शीघ्रता से इस कार्य को पूरा किया जिसके लिए वह अपने इस रूप में आये हैं। क्या कृपा है? प्रसन्न होने से नहीं रोक सकते I
“पुम्साम ध्रुष्टि चित्तापहारिनाम” – उनकी उत्कृष्ट सुन्दरता ऐसा था कि यहां तक कि पुरुष भी उन्हें देखकर स्त्री की भावना विकसित करेंगे I
“मेरे प्रति कितने उदार हैं! उन्होंने मेरी रक्षा के लिए अपने अष्ठ भुजायें सहित दौडे चले आये”।
उनके शरीर के सभी अंग ऐसे थे कि जैसे किसी एक अत्युत्तम चित्रकारी से लिया गया हो। यहां तक कि मनमध भी उनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं और वह उनके सामने कांतिहीन और फीके होके तुच्छ लगेंगे। उनके पास अविनाशी शाश्वत सौन्दर्य का आधिपत्य है। वह नित्य युवा (नित्य योवन) हैं और कई मात्रा में प्रशंसनीय है; प्रशंसा के सबसे श्रेष्ट शब्द भी अतिरंजित नहीं हो सकते हैं।
विशेषज्ञ, कुशल कलाकारों द्वारा प्रदान किए गए चित्र की भाँती, उनके पास कमल नेत्र, सुंदर शरीर और अष्ठ भुजायें है। अयन ने कहा, “वे मेरे हृदय में पूर्णत: बस गए हैं !!”
हम तिरुवरन्गक् कलमबकम में पिळ्ळैप् पेरुमाळ् अय्यंगार के वर्णन को याद कर सकते हैं। उनकी तिरुवरन्गन् की ओर अटल भक्ति थी। वह एक चित्र में तिरुवरंगनाथन को चित्रित करके अपनी इच्छा पूरी करना चाहते थे।
वह एक सुंदर चित्र था, अरंगन् का एक सटीक प्रतिरूप था। लेकिन पिळ्ळैप् पेरुमाळ् अय्यंगार खुश नहीं थे और विलाप करने लगे। चित्रकारी पूर्ण थी। दर्शकों ने यह भी राय दिया कि यह एक सटीक छवि थी। फिर अय्यंगार शोक क्यों थे!
कारण के लिए पूछा तो, उन्होंने कहा….
“वालुम मवुलित्तुलय मनामुम मगराकुल्लई तोय विलियरुलुम मलरन्ध पवलात तिरुनगैयुम मार्विलन्निंद मन्निच्छुदरुम तालुमुल्लरित तिरुनाबित तड़त्तुलाडन्गुम अनैत्तुयिरुम चरना कमलत्तुमैकेल्वन स्द्यिरपुनलुम कानेनाल अलमुडैय करूँगडलिन अगडू किलिय्च चुलित्तोडी अलैक्कुम कूड़क्कविरि नाप्पन्न ऐवायरविल तुयिलमुडै एलुपिरप्पिल अदियवरै एलुधाप पेरिय पेरुमानै एलुधवरिय पेरुमानेंर्रेन्नाधु एलुधियिरून्धेने!!”
“चित्र में, देखों कि तुलसी माला उनके शरीर को सुशोभित कर रही है। परंतु यह सुगंध व्यक्त नहीं कर रही है “।
भगवान के नेत्र लग रहे हैं कि वार्तालाप कर रहे हैं (इतना सजीव है), परंतु उपकार और उदारता का प्रवाह नहीं है। मैंने क्या भूल किया?
यह चित्र मुस्कराहट कि धारा नहीं दर्शाता है; हम उस भावना को प्रदान करने में विफल रहे हैं।
नीले रंग का रत्न चमक का विकिरण नहीं करता। हम यह उदर (पेट) को देख नहीं पा रहे हैं जिसमें सप्त लोक हैं, जो उनके द्वारा उदरित है।
दृढ़ विश्वास के साथ कि अरंगन के पवित्र चरण ही एक मात्र आश्रय हैं, भगवान शिव को यह पवित्र जल धारण करने का विशेष सम्मान मिला है जिसने अरंगन के चरणों को स्पर्श किया है। यह चित्र बहती गंगा को नहीं दर्शाता है, शिव के शीर्ष पर, जिसे वो जल कहा जाता है जो हरि के कमल चरणों को शुद्ध किया था।
वह भगवान जो अपने शय्या (पांच फनों वाला सर्प) पर विश्राम करते हैं, उन लोगों को मुक्ति प्रदान करते हैं जो उन्हें आत्मसमर्पण और शरणागति प्रस्तुत करते हैं।
उन्हें “पेरिय पेरुमाल” के नाम से जाने जाते है। उनका सौंदर्य ऐसा है कि उस शोभा को पूरी तरह से चित्र में चित्रित नहीं किया जा सकता है।
मैं इस सत्य से विस्मरणशील हो गया और उनकी छवि की प्रतिलिपि बनाने का साहस किया। मैं कितना अज्ञानी रहा हूँ? इस प्रकार उन्होंने स्वयं को दोष दिये।
पिळ्ळैप् पेरुमाळ्पि अय्यंगार कि स्थिति उसी सामान थी जैसे ब्रह्मा का जब उन्होंने अष्ठ भुजाओं और शस्त्र के साथ भगवान का दर्शन पाया था।
“क्या मैं उनके मनोरम मुख को देखूँ या उनकी सुंदर नाक को जो कली समान है और कर्पग व्रुक्ष के अनुरूप हिस्सों को देखूँ? मैं नष्ट में हूँ! या मैं उनके सुंदर लाल अधरों को देखूँ?
मैं क्या प्रयास करूं? मैं क्या खोऊँगा?
“तिन्कैम्मा तुयर तिर्तवन, एन कैयानै एन मुन निर्पधे” – वोह जिन्होंने गजेंद्र, जिनने शक्तिशाली गज की रक्षा कि, वो भगवान मेरे सामने अष्ठ भुज के रूप में खडे हैं ” ब्रह्मा ने कहा।
गजेन्द्र पर कृपा वर्षा बरसाने वाले भगवान का इस वृत्तान्त के बारे में पुराण भी कहते है –
“स पिद्यमानो बलिना मकरेना गाजोत्तमा I प्रभेते चरणं देवं तत्रैव अष्टभुजम हरिम I I”
ब्रह्मा ने इन शब्दों से अराधना करना प्रारंभ किया “आप धर्मनिष्ठकों के लिए एक मात्र अंतरंग सहायक (विश्वासयोग्य संरक्षक) हैं।
आपका धर्माचरण गुणों की सूची अनंत है (प्रयास करना व्यर्थ है) I
“आदिकेशवन” से नामांकित होके आपने मुझ जैसे आत्माओं की रक्षा का एक मात्र उद्देश्य से इस स्थान को शाश्वत निवास के रूप में चुना है “।
पुराण ने गजेंद्र के उद्धारकर्ता के रूप में यहां भगवान (अष्ट भुज पेरुमाल) को स्थापित किया गया है।
पेयाळवार (श्री महताह्वय स्वामीजी) के छंद (“तोट्टपडैयेट्टुम…..”) भी भगवान के इस गजेंद्र मोक्ष की कहानी का वर्णन करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि बुरे सपनों के कारण डर से छुटकारा पाने के लिए, आश्रय गजेंद्र वरदन् दूसरा नाम ”अष्ट भुज पेरुमाल” है?
“वास्तव में?” .. यदि आप आश्चर्य होके पूछते हैं, इसी स्थिती में अगले भाग का स्वागत करते है।
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वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी के भाग 11-3 में, अष्ठ भुज पेरुमाल अहम् स्थान लेते है। यह उनके प्रति समर्पित है। भिजगिरी क्षेत्र, तिरुपारकडल क्षेत्र और तिरुवेक्का की महानता के साथ है। केवल तभी अत्तिगिरी अप्पन का आनंदमय वर्षा की झलक मिलेगी । पाठकों के धीरज और समर्थन के लिए धन्यवाद।
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अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी
Source – https://granthams.koyil.org/2018/05/21/story-of-varadhas-emergence-11-2/
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