श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इस प्रश्न की व्याख्या कर रहे हैं “वे कौन हैं?”
सूत्रं – ४२
अज्ञरुम्, ज्ञानाधिकरुम्, भक्ति परवशरुम् (विवशरुम्)।
सरल अनुवाद
वे अज्ञानी हैं, परम ज्ञानी हैं, गहन भक्ति वाले हैं।
व्याख्या
अज्ञरुम् …
अज्ञर्
जिनके पास भगवान को प्राप्त करने के साधन में संलग्न होने का ज्ञान नहीं है। अज्ञानता भी अक्षमता को इंगित करता है। श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी सूत्र ११५ में कहते हैं, “प्रापकान्तर परित्यागत्तुक्कु अज्ञान अशक्तिगळ् अन्ऱु” (अन्य उपाय छोड़ने का मुख्य कारण ज्ञान या क्षमता का अभाव नहीं है)।
ज्ञानाधिकर
ज्ञान और क्षमता होने के पश्चात् भी, स्वरूप (स्वयं की वास्तविक प्रकृति) के बारे में सच्चा ज्ञान को समझने के कारण, जो कि भगवत् अत्यन्त पारतंत्रयम (भगवान पर पूर्ण निर्भरता) है, अन्य उपायों को, अपने वास्तविक प्रकृति के विरोधाभासी होते हुए, त्यागने का पूरा ज्ञान रखते हैं।
भक्ति विवशर्
जो लोग भगवान के प्रति अत्याधिक प्रेम के कारण बहुत शिथिल क्षमताओं के कारण कुछ भी उचित प्रकार से करने में असमर्थ हैं।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/02/08/srivachana-bhushanam-suthram-42-english/
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