श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः
अवतारिका (परिचय)
इनके कारण ये बताए गए हैं।
चूर्णिका – ९
कर्मकृपाबीजम् पॊय्न्निन्ऱ अरुळ् पुरिन्द ऎन्गिऱ अविद्या सौहार्दङ्गळ् ।
सामान्य व्याख्या
कर्म का कारण अर्थात् आत्मा का अज्ञान (अविद्या) है और कृपा का मूल कारण अर्थात् भगवान का कृपालु हृदय है।
व्याख्यान (टीका टिप्पणी)
अर्थात् – जैसे कि तिरुविरुत्तम् १ में कहा गया है “पॊय् निन्ऱ ज्ञानम्” (मिथ्या ज्ञान) कर्म का कारण आत्मा का अज्ञान है। जैसे कि इरण्डाम् तिरुवन्दादि ५९ “अरुळ् पुरिन्द सिन्दै” (कृपालु विचार) अनुग्रह का स्रोत परोपकारी भगवान का हृदय है। “ईश्वरस्यच सौहार्दम् यदृच्च सुकृतम् हरे:। विष्णो: कटाक्षम् अदवेशम् अभिमुख्यम् च सात्विकै सम्भाषणम् शदेतानि आचार्य प्राप्ति हेतु:।।” (ईश्वर का दयालु हृदय, इस चेतना द्वारा अनजाने में किए गए अच्छे कर्म, भगवान विष्णु की दयालु दृष्टि जो पापों को नाश करती है उनके प्रति (विष्णु के प्रति) घृणा रहित होना, अनुकूल होना और सज्जन पुरुषों के साथ मैत्रीपूर्ण घनिष्ठ संबंध होना, ये छः कारण चेतना को सदाचार्य की ओर ले जाते हैं), और यह समझाया गया है कि आत्मा की जीवन्तता के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए प्रयासों का करण उनका दयालु हृदय है। इसी दयालु हृदय के कारण भगवान के दिव्य हृदय में चेतना के प्रति करुणा भाव उमड़ आता है।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी।
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