श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
<< पूर्व
अवतारिका
जब उनसे पूछा जाता है कि “ऐसी स्थिति में, यदि स्वयं-प्रयत्न और स्वयं-आनंद में कोई संलग्नता नहीं है, तो चेतन के प्रयास और चेतन का उद्देश्य क्या है?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझाते हैं।
सूत्रं – ७२
परप्रयोजन प्रवृत्ति प्रयत्न फलम्; तद्विषय प्रीति चैतन्य फलम्।
सरल अनुवाद
चेतन के प्रयास का उद्देश्य भगवान के लाभ के लिए कार्य करना है; चेतन की चेतना का उद्देश्य भगवान को प्रसन्नता प्रदान करना है।
व्याख्या
परप्रयोजन …
अर्थात् – जैसा कि श्रीरामायण अयोध्य काण्ड ३१.२५ में कहा गया “अहं सर्वं करिष्यामि” (मैं सब कुछ करूँगा), श्रीसहस्रगीति ३.३.१ में कहा गया “वऴुविला अडिमै सऎय्य वेण्डुम्” (निरंतर कैंङ्कर्य करना चाहूँगा), तिरुप्पावै २९ में कहा गया “उनक्के नाम् आट्चॆय्वोम्” (हम केवल आपकी प्रसन्नता के लिए सेवा करेंगे), भगवान के लिए किए जानेवाले कैंकर्य रूपी कार्य, कर्म रूपी चेतन के प्रयास का परिणाम है।
जैसा कि स्तोत्र रत्नम् ४६ में कहा गया है “नित्य किङ्करः प्रहर्षयिष्यामि” (शाश्वत कैंङ्कर्य प्राप्त करने पर, मैं कब केवल आपको प्रसन्न करूँगा?), चेतन के भगवान को आनंद देने के उद्देश्य से किए गए कैंङ्कर्य के कारण बहुत प्रसन्न होने वाले भगवान का आनंद ही यह चेतन में चेतना का परिणाम है, जो चेतन को अचित से अलग करता है।
श्रीकुलशेखर आऴ्वार् ने भी पेरुमाळ् तिरुमोऴि ४.९ में कहा है “पडियाय्क् किडन्दु उन् पवळ वाय् काण्बेने” (मुझे आपके सन्निधि के प्रवेश द्वार पर पदन्यास बनने दीजिए और आनंद से आपके मोती जैसे होठों को देखने दीजिए)।
इसके साथ – उस चेतन के लिए जिसके पास स्वयत्न निवृत्ति और स्वप्रयोजन निवृत्ति है जो क्रमशः पारतंत्र्यम् और शेषत्वम् के परिणाम हैं, चेतन के पारतंत्र्यम् और शेषत्वम् के योग्य उद्देश्य को समझाया गया है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/03/25/srivachana-bhushanam-suthram-72-english/
संगृहीत- https://granthams.koyil.org/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org