तुला मास अनुभव – मुदल आलवारों और श्रीरामानुज स्वामीजी का दिव्य संबंध

     श्री:
श्रीमते शठकोपाये नम:
श्रीमते रामानुजाये नम:
श्रीमदवरवरमुनये नम:
श्री वानाचल महामुनये नम:

तुला मास के पावन माह में अवतरित हुए आलवारों/आचार्यों की दिव्य महिमा का आनंद लेते हुए हम इस माह के मध्य में आ पहुंचे है। इस माह की सम्पूर्ण गौरव के विषय में पढने के लिए कृपया https://granthams.koyil.org/thula-masa-anubhavam-hindi/ पर देखें। अब हम तिरुवरंगत्तु अमुदनार द्वारा रचित दिव्य रामानुस नूट्रन्तादि और उस पर श्रीवरवरमुनी स्वामीजी के व्याख्यान के माध्यम से मुदल आलवारों और श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य संबंध का आनंद अनुभव करेंगे।

अमुदनार ने रामानुस नूट्रन्तादि की रचना कि जिसे हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा “प्रपन्न सावित्री” के रूप में संबोधित किया गया है। रामानुस नूट्रन्तादि के लिए अपने व्याख्यान की अवतारिका (परिचय खंड) में श्रीवरवरमुनी स्वामीजी कहते है कि जिस प्रकार त्रैवरणिकाओं के द्वारा गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन किया जाना चाहिए, उसी प्रकार प्रपन्नों द्वारा रामानुज नूट्रन्तादि का जप प्रतिदिन किया जाना चाहिए। श्रीरंगनाथ भगवान की दिव्य अनुकम्पा से, यह प्रबंध भी कण्णिनुण् शिरूताम्बु के समान 4000 दिव्य प्रबंध का एक अंश है। कण्णिनुण् शिरूताम्बु (मधुरकवि आलवार द्वारा श्रीशठकोप स्वामीजी के लिए गाया गया) और रामानुज नूट्रन्तादि (अमुदनार द्वारा श्रीरामानुज स्वामीजी के लिए गाया गया) दोनों ही चरम पर्व निष्ठा को स्थापित करते है (आचार्य के प्रति उत्कृष्ट श्रद्धा की अवस्था)।

इस दिव्य प्रबंध में, अमुदनार द्वारा रचित प्रथम 7 पासूरों को परिचय के समान माना जाता है और इस प्रबंध का सार 8वे पासूर से प्रारंभ होता है। प्रथमतय, अमुदनार, सभी आलवारों और आचार्यों के परिपेक्ष्य में श्रीरामानुज स्वामीजी की महिमा गान करते हुए प्रबंध का प्रारंभ करते है। तुला मास अनुभव के इस अंक में हम इस प्रबंध के 8वे, 9वे और 10वे पासूरों का आनंद अनुभव करेंगे जो मुदल आलवारों (सरोयोगी आलवार, भूतयोगी आलवार और महदयोगी आलवार) की महिमा को वर्णित करते है।

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पुष्पवल्ली ताय्यार- देहलिस पेरुमाल, तिरुक्कोवलुर

पासूर 8

वरुत्तुम पुरविरुल माट्र एम् पोय्गैप्पिरान 
मरैयिन कुरुत्तिन पोरुलैयुम् चेनतमिल तन्नैयुम् कूट्टी
ओंरथ तिरित्तन्रेरित्त तिरुविलक्कैत् तन् तिरुवुल्लत्ते इरुत्तुम 
परमं इरामानुसन एम् ईरैयवने

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सरोयोगी आलवारश्रीरामानुज स्वामीजी, भूतपुरी

अनुवाद (श्रीवरवरमुनी स्वामीजी के व्याख्यान के आधार पर):

मूर्ख मनुष्य समझते है कि उन्हें प्राकृतिक बलों (अग्नि, वायु, आदि) से संकट है, बिना यह जाने कि श्रीमन्नारायण ही सभी के स्वामी है और सभी देवता सिर्फ उनकी ही आज्ञा का पालन करते है। सरोयोगी आलवार ने जो प्रपन्नों के लिए महत्वपूर्ण आचार्य है, अत्यंत उदारता से वेदांत के गहन सिद्धांतों को बहुत सुंदरता से तमिल भाषा में दर्शाया है। भगवान श्रीमन्नारायण की उपस्थिति द्वारा तिरुक्कोवलुर के बरामदे में एक ही स्थान में तनाव उत्पन्न होने पर, उन्होंने मुदल तिरुवंतादी के प्रथम पासूर “वैयम तगलिया” के माध्यम से ज्ञान का दीपक प्रज्वलित किया। श्रीरामानुज स्वामीजी, जिनकी महिमा अपरिमित है, जो सरोयोगी आलवार द्वारा प्रकट किये गए सिद्धांतों को प्रेम से अपने ह्रदय में धारण करते है, हमारे स्वामी है।

पासूर 9

इरैवनैक् काणुम इदयत्तिरूळके
ज्ञानमेन्नुम निरैविलक्केत्रिय भूतत तिरुवडी ताल्गल
नेन्जत्तुरैयवैत्ताळुम् इरामानुसन पुगल ओतुम नल्लोर मरैयिनैक कात्तु
इंत मण्णगत्ते मन्न वैप्पवरे

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भूतयोगी आलवारश्रीरामानुज स्वामीजी, भूतपुरी

अनुवाद (श्रीवरवरमुनी स्वामीजी के व्याख्यान के आधार पर):

हमारा ह्रदय ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम यह जान सकते है कि श्रीमन्नारायण भगवान ही हमारे सच्चे स्वामी है। परंतु हमारे हृदय पर अविवेक रूपी अंधकार का आवरण पड़ा हुआ है। हमारे स्वामी भूतयोगी आलवार ने इरण्डाम तिरुवंतादी के प्रथम पासूर के प्रारम्भ “अन्बे तगलिया” से “ज्ञानच्चुडर विलक्केट्रीनेन्” तक परज्ञान का दीपक प्रज्वलित किया। श्रीरामानुज स्वामीजी निरंतर ऐसे श्री भूतयोगी स्वामीजी के चरण कमलों का ध्यान करते है और उसका आनंद अनुभव करते है। ऐसे श्रीरामानुज स्वामीजी के अनुयायी जो निरंतर उनके दिव्य गुणों के अनुभव में संलग्न रहते है, वे बाह्य (जो वेदों को स्वीकार नहीं करते) और कुदृष्टियों (जो वेदों को स्वीकार करते है परंतु उसके तत्वों का अनर्थ करते है) से वेदों का संरक्षण करेंगे। श्रीरामानुज स्वामीजी के ऐसे अनुयायी वेदों के सिद्धांतों को सटीकता से स्थापित करेंगे।

पासूर 10

मन्निय पेरिरुल माण्डपिन 
कोवलुल मामलराल तन्नोडु मायनैक कण्डमै काट्टुम्
तमिळ्त्तलैवन् पोन्नडि पोट्रूम इरामानुसरकंबु पुण्डवर ताल
चेन्नीयिर चूडुम् तिरुवुडैयार एन्रुम चिरीयरे

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महदयोगी आलवारश्रीरामानुज स्वामीजी, भूतपुरी

अनुवाद (श्रीवरवरमुनी स्वामीजी के व्याख्यान के आधार पर):

सरोयोगी आलवार और भूतयोगी आलवार द्वारा प्रज्वलित दीपक से अज्ञान के अँधेरे का नाश होने पर, मुदल तिरुवंतादी के 89वे पासूर में दर्शाया गया है “नियुम् तिरुमंगलुम्” ( आप और श्री महालक्ष्मीजी), अर्थात तिरुवल्लुर दिव्य देश में महदयोगी आलवार को भगवान और श्रीमहालक्ष्मीजी के दिव्य दर्शन और कृष्णावतार (जहाँ भगवान पुर्णतः अपने भक्तों के बस में होकर रहते है) के दिव्य गुणों के दर्शन प्राप्त हुए। महदयोगी आलवार जो तमिल भाषा में श्रेष्ठ थे, अपने इन दिव्य दर्शनों के विषय में मून्ऱाम् तिरुवंतादी के प्रथम पासूर में बताते है “तिरुक्कण्देन्”। श्रीरामानुज स्वामीजी ऐसे महान वैभवशाली महदयोगी आलवार के चरण कमलों में प्रणाम करते है। जो मनुष्य, श्रीरामानुज स्वामीजी (जो महदयोगी आलवार के चरणकमलों के अनुरागी है) के प्रति अनुराग और प्रीति रखते है, ऐसे मनुष्यों के चरण कमलों को पुष्पों के समान शीष पर धारण करने वाले मनुष्यों का साथ ही महान संपदा है।

5. Thiruvarangathu-Amudhanar

तिरुवरंगत्तु अमुदनार – श्रीरंगम

6. mamuni-azhwarthirunagariश्रीवरवरमुनी स्वामीजीआलवार तिरुनगरी

इस प्रकार हमने मुदल आलवारों और श्रीरामानुज स्वामीजी के मध्य का दिव्य संबंध अमुदनार के दिव्य वचनों और श्रीवरवरमुनी स्वामीजी द्वारा प्रदत्त इसके सुंदर व्याख्यान के माध्यम से देखा। आईये हम मुदल आलवारों, श्रीरामानुज स्वामीजी, अमुदनार और श्रीवरवरमुनी स्वामीजी के श्री चरणों में प्रणाम करे और उनकी कृपा प्राप्त करे।

-अदियेन भगवती रामानुजदासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2013/11/aippasi-anubhavam-mudhalazhwargal-emperumanar/

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