यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १००

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९९ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वियोग में शिष्यों को पीड़ा हुई  तत्पश्चात जैसे कि कहा गया हैं “कदिरवन् पोय् गुणपाल् सेर्न्द महिमै पोल्” (जैसे सूर्य कि महानता पूर्व दिशा में पहुँचती हैं), पूर्व दिशा में सूर्य का अस्त होना। शिष्य जैसे जीयर् नायनार्, … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९८ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का अंतिम संस्कार  तत्पश्चात उनके अन्त्येष्टि क्रिया करने के लिये उनके प्रमुख शिष्य और परमज्ञानी पौत्र जीयर् नायनार् कावेरी नदी में स्नान तथा ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण किया। फिर उन्होंने चांदी के घड़े में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के तिरुमञ्जन के लिये … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९७ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने अंतिम काल में कृपापूर्वक ४००० दिव्य प्रबन्ध का श्रवण करते हैं। फिर उन्होंने कृपापूर्वक उन्होंने अपने शिष्यों को व्यक्तिगत रूप से बुलाकर उन्हें अनुकूल निर्देश दिये। जब श्रीवैकुण्ठ, जिसे कलङ्गाप् पेरुनगरम्  (महान स्थान जो कभी भी भ्रम का … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९६ जब श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ऐसे स्थिति में थे तब मेल्नाट्टुत् तोऴप्पर् और उनके भ्राता अऴगिय मणवाळप्पेरुमाळ् नायनार् जीयर् कृपाकर श्रीरङ्गनाथ भगवान कि पूजा करने हेतु श्रीरङ्गम् में पधारे। श्रीभट्टर्पिरान् जीयर् स्वामीजी उन्हें तेन्माडवीदी (आज के समय में तेऱ्कु उत्तर वीथी) में मिले … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९५ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का श्रीवैकुण्ठ जाने के लिये आग्रह  श्रीवानमामलै जीयर् स्वामीजी के कुछ दिनों के जाने के पश्चात श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को पुनः प्राप्य भूमि (श्रीवैकुंठ) कि ओर स्नेह हुआ, त्याज्यभूमि (संसार) के प्रति घृणा हुआ और भगवान के अनुभव के अभाव … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९४ उन सभी गतिविधियों के साथ जो उनके दिव्य अवतार के परिणाम स्वरूप पूरी होनी थीं सम्पन्न होगये, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीवैकुण्ठ जाने के इच्छुक थे जहां अथक नित्यसुरियों के स्वामी निवास करते हैं। वें सभी के उस तेजोमय मूल के सुंदर रूप … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९३ पेरीय जीयर्, जो ऐसे शिष्यों द्वारा पूजे गये हैं, जिन्होंने संसार के लोगों को अर्थ पञ्चकम् (स्वयं को जानने के पाँच तत्त्व, भगवान को जानना, भगवान को प्राप्त करने का उपाय, भगवान को पाने का महानतम लाभ और भगवान तक पहुँचने … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९२ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकार आचार्य हृदयम् पर व्याख्या लिखते हैं  तत्पश्चात अपने दिव्य शरीर के कमजोरी पर ध्यान ने देते हुए श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने दिव्य मन में आचार्य हृदयम् (एक प्रबन्ध जिसे श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के अनुज अऴगियमणवाळप्पेरुमाळ् नायनार्​ ने रचा था) पर … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९१ दिव्यदेशों में शिष्यों के माध्यम से कैङ्कर्य करते हैं  तत्पश्चात महाबली वाणनाथन जिन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों में शरण ली थी, ने तिरुमालै तन्दान् तोऴप्पर् (तिरुमालै तोऴप्पर्) को प्रार्थमिक व्यक्ति के रूप में रखते हुए, तिरुमालिरुञ्चोलै दिव्यदेश में सभी प्रकार … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९० श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर श्रीरङ्गम् लौटते हैं  श्रीवरवरमुनि स्वामीजी तिरुमालिरुञ्चोलै से प्रस्थान कर कृपाकर उस स्थान पर पहुँचते हैं जहां तिरुमालिरुञ्चोलै के स्वामी नित्य रात्री को शयन करते हैं, श्रीरङ्गम् [श्रीरङ्गम् वह दिव्य स्थान हैं जहां सभी दिव्यदेश के भगवान हर रात्री … Read more