आचार्य हृदयम् – १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ११ अवतारिका (परिचय) यहाँ पर इस शंका का निवारण किया गया है कि, “क्या (अचित और भगवद् सम्बन्ध) ये दोनों सम्बन्ध जो अनादिकाल से हैं आत्मा के लिए स्थायी हैं?” चूर्णिका १२ ऒन्ऱु कूडिनदाय्प् पट्रऱुक्क मीण्डु ऒऴिगैयाले … Read more

आचार्य हृदयम् – ११

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १० अवतारिका (परिचय) इन दोनों सम्बन्धों का प्रभाव आत्मा पर जो पड़ता है यहाँ वर्णित है। चूर्णिका – ११ इवै किट्टमुम् वेट्टुवेळानुम् पोले ऒण् पॊरुळ् पॊरुळ् अल्लाद ऎन्नादे नानिलाद यानुम् उळनावन् ऎन्गिऱ रहस्य चतुष्टयम् साम्यम् पॆऱत् तिन्ऱूदि अन्दमुम् वऴ्वुमागिऱ हानि … Read more

आचार्य हृदयम् – १०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ९ अवतारिका (परिचय) अज्ञान (आत्मा का) और करुणामय हृदय (भगवान का) के कारण समझाये हैं। चूर्णिका – १० एतन्निमित्तम् मुन्नमे मुदल् मुन्नमेयान अचित् अयन अनादि सम्बन्दङ्गळ्। सामान्य व्याख्या आत्मा का अचित (प्रकृति/तत्व) और अयन (भगवान/धाम) के साथ अनादि काल से … Read more

आचार्य हृदयम् – ९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ८ अवतारिका (परिचय) इनके कारण ये बताए गए हैं। चूर्णिका – ९ कर्मकृपाबीजम् पॊय्न्निन्ऱ अरुळ् पुरिन्द ऎन्गिऱ अविद्या सौहार्दङ्गळ् । सामान्य व्याख्या कर्म का कारण अर्थात् आत्मा का अज्ञान (अविद्या) है और कृपा का मूल कारण अर्थात्  भगवान का कृपालु … Read more

आचार्य हृदयम् – ८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ७ अवतारिका (परिचय) इनके कारणों को बताया गया है। चूर्णिका – ८ इवट्रुक्कु मूलम् इरुवल्लरुळ् नल्विनैगळ् सामान्य व्याख्या भगवान के कृपा कटाक्ष (कृपा दृष्टि) जन्म के समय और जन्म (बिना कृपाकटाक्ष के) का कारण भी भगवान की कृपा ही है … Read more

आचार्य हृदयम् – ७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ६ अवतारिका (परिचय) यह सत्व, रज और तम इन गुणों के होने का कारण बताता है। चूर्णिका – ७ सत्व असत्व निदानम् इरुळ् तरुम् अमलङ्गळाग एन्नुम् जन्म जायमान काल कटाक्षङ्गळ। सामान्य व्याख्या इस संसार में जन्म के समय भगवान की … Read more

आचार्य हृदयम् – ६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ५ अवतारिका (परिचय) जब यह प्रश्न पूछा गया, “इस अज्ञानता का मूल कारण क्या है?” तब इसका स्पष्टीकरण यहां दिया गया है। चूर्णिका – ६ इवट्रुक्कु कारणम् इरण्डिल् ऒन्ऱिनिल् ऒन्ऱुगैगळ्। सामान्य व्याख्या इसका (ज्ञान और अज्ञान का) कारण रजस और … Read more

आचार्य हृदयम् – ५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ४ अवतारिका (परिचय) इस सूत्र में जीवात्मा को प्राप्त होने वाले ऐसे सुख और दु:ख का कारण समझाया है। चूर्णिका – ५ अनन्तक्लेश निरतिशयानन्द हेतु – मऱन्देन् अऱियगिलादे उणर्विलेन् एणिलेन् अयर्तॆन्ऱुम् उय्युम् वगै निन्ऱवॊन्ऱै नन्गऱिन्दनन् उणर्विनुळ्ळे आम्बरिसॆन्ऱुम् सॊल्लुगिऱ ज्ञातव्य पञ्चक … Read more

आचार्य हृदयम् – ४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ३ अवतारिका (परिचय) क्योंकि यह सुख और दु:ख प्रत्येक के कर्म और परिस्थिति के परिणामस्वरूप होते हैं, इसलिए यहाँ चरम सीमा की व्याख्या है। चूर्णिका-४ इवट्रुक्कु ऎल्लै इनबुतुन्बळि पन्मामायत्तु अऴुन्दुगैयुम् कळिप्पुम् कवर्वुमट्रुप् पेरिन्बत्तु इन्बुऱुगैयुम् सामान्य व्याख्या इस भौतिक संसार में … Read more

आचार्य हृदयम् – ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – २ अवतारिका (परिचय) यहाँ यह बताया है कि क्या त्यागना होगा और क्या गृहण करना है। चूर्णिका ३ त्याज्योपादेयङ्गळ् सुक दुक्कङ्गळ् सामान्य व्याख्या  सुख को स्वीकारना है और दु:ख को‌ त्यागना है। व्याख्यान (टीका टिप्पणी) इसका अर्थ … Read more