आचार्य हृदयम् – ८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ७ अवतारिका (परिचय) इनके कारणों को बताया गया है। चूर्णिका – ८ इवट्रुक्कु मूलम् इरुवल्लरुळ् नल्विनैगळ् सामान्य व्याख्या भगवान के कृपा कटाक्ष (कृपा दृष्टि) जन्म के समय और जन्म (बिना कृपाकटाक्ष के) का कारण भी भगवान की कृपा ही है … Read more

आचार्य हृदयम् – ७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ६ अवतारिका (परिचय) यह सत्व, रज और तम इन गुणों के होने का कारण बताता है। चूर्णिका – ७ सत्व असत्व निदानम् इरुळ् तरुम् अमलङ्गळाग एन्नुम् जन्म जायमान काल कटाक्षङ्गळ। सामान्य व्याख्या इस संसार में जन्म के समय भगवान की … Read more

आचार्य हृदयम् – ६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ५ अवतारिका (परिचय) जब यह प्रश्न पूछा गया, “इस अज्ञानता का मूल कारण क्या है?” तब इसका स्पष्टीकरण यहां दिया गया है। चूर्णिका – ६ इवट्रुक्कु कारणम् इरण्डिल् ऒन्ऱिनिल् ऒन्ऱुगैगळ्। सामान्य व्याख्या इसका (ज्ञान और अज्ञान का) कारण रजस और … Read more

आचार्य हृदयम् – ५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ४ अवतारिका (परिचय) इस सूत्र में जीवात्मा को प्राप्त होने वाले ऐसे सुख और दु:ख का कारण समझाया है। चूर्णिका – ५ अनन्तक्लेश निरतिशयानन्द हेतु – मऱन्देन् अऱियगिलादे उणर्विलेन् एणिलेन् अयर्तॆन्ऱुम् उय्युम् वगै निन्ऱवॊन्ऱै नन्गऱिन्दनन् उणर्विनुळ्ळे आम्बरिसॆन्ऱुम् सॊल्लुगिऱ ज्ञातव्य पञ्चक … Read more

आचार्य हृदयम् – ४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ३ अवतारिका (परिचय) क्योंकि यह सुख और दु:ख प्रत्येक के कर्म और परिस्थिति के परिणामस्वरूप होते हैं, इसलिए यहाँ चरम सीमा की व्याख्या है। चूर्णिका-४ इवट्रुक्कु ऎल्लै इनबुतुन्बळि पन्मामायत्तु अऴुन्दुगैयुम् कळिप्पुम् कवर्वुमट्रुप् पेरिन्बत्तु इन्बुऱुगैयुम् सामान्य व्याख्या इस भौतिक संसार में … Read more

आचार्य हृदयम् – ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – २ अवतारिका (परिचय) यहाँ यह बताया है कि क्या त्यागना होगा और क्या गृहण करना है। चूर्णिका ३ त्याज्योपादेयङ्गळ् सुक दुक्कङ्गळ् सामान्य व्याख्या  सुख को स्वीकारना है और दु:ख को‌ त्यागना है। व्याख्यान (टीका टिप्पणी) इसका अर्थ … Read more

आचार्य हृदयम् – २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १ अवतारिका (परिचय) ऐसे विवेक (अन्तर करने की क्षमता) का फलस्वरूप यहाँ समझाया है। चूर्णिका-२ विवेक पलम् वीडु पट्रु सामान्य व्याख्या यह भेद करने की क्षमता का फल है कि त्यागने के योग्य का त्याग करना और … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ६० – निष्कर्ष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << परमपद धाम की ओर लौटना  नम्माऴ्वार् अपने तिरुवाय्मोऴि में वर्णन करते हैं, “कण्णन् कऴल् इनै नण्णुम् मनम् उडैयीर् ऎण्णुम् तिरुनामम् तिण्णम् नारणमे।” इसका तात्पर्य है कि जो लोग कृष्ण के चरण कमलों की प्राप्ति करना चाहते हैं उनको “नारायण” का ध्यान … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५९ – परमपद धाम की ओर लौटना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << वैदिक पुत्रों को लौटाना कृष्ण इस भौतिक संसार में सहस्र वर्ष तक रहे और बहुत लोगों का कल्याण किया। तत्पश्चात् उन्होंने दिव्य तेजोमय निजधाम जाने का निश्चय किया। आइए देखते हैं कि कैसे परमपद गये। महाभारत युद्ध के पश्चात् धृतराष्ट्र की … Read more

आचार्य हृदयम् – १

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः श्रृंखला << अवतारिका अवतारिका(परिचय) प्रथम चूर्णिका में जैसे कि श्रीरङ्गराज स्तवम में वर्णन किया है, “हर्तुं तमस् सदसती च विवेक्तुमीशो मानं प्रदीपमिव कारुणिको ददाति। तेनावलोक्या कृतिन: परिभुञ्जते तं तत्रैव केऽपि चपलाः शलभीभवन्ति।।” (एम्पेरुमान् जो कृपा सिंधु हैं वे वेद प्रदान करते हैं … Read more