श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका यह पूछे जाने पर कि “क्योंकि यह (प्रपत्ती) अंगम (सहायक चरणों) के साथ निर्धारित किया गया है  तो क्या यह नियम “यत् यत् साङ्गम्, तत् तत् साधनम्”  (जिसमें भी सहायक चरण/अंग है उसे साधन माना जाएगा), यहाँ लागू नहीं … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया “उस विषय में, प्रपत्ती की वास्तविक प्रकृति क्या है?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी  दयापूर्वक समझाते हैं। सूत्रं – ५५ इदु तनक्कु स्वरूपम् तन्नैप् पॊऱादॊऴिगै। सरल अनुवाद प्रपत्ती का वास्तविक स्वरूप यह है कि वह स्वयं को उपाय … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जैसा कि पहले बताए गए सूत्र ३२ “धर्मपुत्रादिगळुम्” में व्यक्तित्वों जैसे धर्मपुत्र में देखा गया है, प्रपत्ती को एक साधन के रूप में किया जाता है; इसे कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग और प्रपत्ती, ऐसे साधन के रूप … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका पिछले सूत्र (तन्नैप् पेणवुम् पण्णुम् धरिक्कवुम् पण्णुम्) में बताया गया है कि आऴ्वारों के स्व यत्नं, भगवान को अपने निकट लाना और जैसे ही वे आते हैं उन्हें दूर करना, जो परस्पर विरोध गुण हैं, उनकी अत्यधिक भक्ति के … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी भक्ति की अवस्था में परिवर्तन के प्रभाव के विषय में बताते हैं जो व्यक्ति की प्रपत्ती के प्रति प्रतिबद्धता को तोड़ देता है। सूत्रं – ५२ तन्नैप् पेणवुम् पण्णुम् धरिक्कवुम् पण्णुम्। सरल अनुवाद  इससे स्वयं का … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका अतः श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने प्रपत्ती करने वाले तीन प्रकार के व्यक्तित्वों की उपस्थिति के प्रामाणिक प्रमाण दिखाए; उन्होंने यह भी कहा कि प्रपत्ती के तीन प्रकारों में  भक्ति पारवश्यम् के कारण की गई प्रपत्ती सबसे महत्वपूर्ण है। यह … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ५०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका इसके बाद, इस संदर्भ में श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी द्वारा पिराट्टी (श्री महालक्ष्मी) के दयालु कथन को समझाया है जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड की माता हैं और जो सबसे अधिक कल्याणकारी हैं। सूत्रं – ५०  “इदं शरणम् अज्ञानाम्” सरल अनुवाद “यह … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ४९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “क्या इन तीन प्रकार के व्यक्तित्वों के लिए कोई प्रमाण है [जो भगवान के प्रति समर्पण करते हैं]?”  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी  एक श्लोक उद्धृत कर रहे हैं जिसे श्रीपराशर भट्टर स्वामीजी  ने दयापूर्वक कहा था।  … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ४८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका यह पूछे जाने पर कि “प्रपत्ती में, जो इन तीन विषयों के आधार पर होता है, कौन सा सबसे महत्वपूर्ण है?”  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी  दयापूर्वक कहते हैं, सूत्रं – ४८ मुख्यम् अदुवे। सरल अनुवाद वह (अत्याधिक भक्ति पर आधारित … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ४७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “क्या ये तीनों विषय वहाँ प्रपत्ती के कारण होंगे (‘ऎन् नान् सॆय्गेन्‘ पाशुर में)?”  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक कहते हैं सूत्रं – ४७ अङ्गु ऒन्ऱैप् पट्रि इऱुक्कुम् । सरल अनुवाद  यह उन विषयों में से … Read more