श्रीवचन भूषण – सूत्रं २१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरि शृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस दोष की निर्दयता को समझाते हैं।  सूत्रं – २१ पाण्डवर्गळैयुम् निरसिक्क प्राप्त्यमायिरुक्क वैत्तदु द्रौपदियुडैय मङ्गळ सूत्रत्तुक्काग  सरल अनुवाद जबकि उसे पांडवों को भी मारना चाहिए था, उसने द्रौपदी के मंगलसूत्र के लिए उन्हें जीवित छोड़ … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं २०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरि शृंखला << पूर्व अवतारिका यहाँ तक कि ये (पिछले सूत्र में उल्लिखित) भी प्राथमिक दोष नहीं हैं; प्राथमिक दोष एक अलग है। सूत्रं – २० द्रौपदी परिभवम् कण्डिरुन्ददु कृष्णाभिप्रायत्ताले प्रधान दोषम् सरल अनुवाद भगवान श्रीकृष्ण की राय अनुसार द्रौपदी के अपमान के समय … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरि शृंखला << पूर्व अवतारिका यद्यपि अर्जुन का दोष राक्षसियों जितना लोकप्रिय नहीं है, और वह अच्छे गुणों वाला माना जाता है, फिर भी उसमें दोष क्या है?  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी यह प्रश्न उठाते हैं और उनका दोष दिखा रहे हैं। सूत्रं – … Read more

आचार्य हृदयम् – १४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १३ अवतारिका (परिचय) इस चूर्णिका में इस प्रश्न का समाधान किया गया है कि, “यदि भगवान सभी आत्माओं के साथ निज सम्बन्ध के कारण शास्त्रों का प्रकटीकरण कर रहे हैं, तो केवल मोक्ष की ओर ले जाने वाले शास्त्र का ही … Read more

आचार्य हृदयम् – १३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १२ अवतारिका (परिचय) नायनार का कहना है कि भगवान और आत्मा के मध्य सम्बन्ध शास्त्र प्रदानम् (शास्त्र प्रदान) करना है। चूर्णिका – १३ इन्द उदरत्तरिप्पु त्रैगुण्य विषयमानवट्रुक्कु प्रकाशकम्। सामान्य व्याख्या इस सम्बन्ध के कारण ही भगवान ने शास्त्र (वेद) प्रदान किया। … Read more

आचार्य हृदयम् – १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ११ अवतारिका (परिचय) यहाँ पर इस शंका का निवारण किया गया है कि, “क्या (अचित और भगवद् सम्बन्ध) ये दोनों सम्बन्ध जो अनादिकाल से हैं आत्मा के लिए स्थायी हैं?” चूर्णिका १२ ऒन्ऱु कूडिनदाय्प् पट्रऱुक्क मीण्डु ऒऴिगैयाले … Read more

आचार्य हृदयम् – ११

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १० अवतारिका (परिचय) इन दोनों सम्बन्धों का प्रभाव आत्मा पर जो पड़ता है यहाँ वर्णित है। चूर्णिका – ११ इवै किट्टमुम् वेट्टुवेळानुम् पोले ऒण् पॊरुळ् पॊरुळ् अल्लाद ऎन्नादे नानिलाद यानुम् उळनावन् ऎन्गिऱ रहस्य चतुष्टयम् साम्यम् पॆऱत् तिन्ऱूदि अन्दमुम् वऴ्वुमागिऱ हानि … Read more

आचार्य हृदयम् – १०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ९ अवतारिका (परिचय) अज्ञान (आत्मा का) और करुणामय हृदय (भगवान का) के कारण समझाये हैं। चूर्णिका – १० एतन्निमित्तम् मुन्नमे मुदल् मुन्नमेयान अचित् अयन अनादि सम्बन्दङ्गळ्। सामान्य व्याख्या आत्मा का अचित (प्रकृति/तत्व) और अयन (भगवान/धाम) के साथ अनादि काल से … Read more

आचार्य हृदयम् – ९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ८ अवतारिका (परिचय) इनके कारण ये बताए गए हैं। चूर्णिका – ९ कर्मकृपाबीजम् पॊय्न्निन्ऱ अरुळ् पुरिन्द ऎन्गिऱ अविद्या सौहार्दङ्गळ् । सामान्य व्याख्या कर्म का कारण अर्थात् आत्मा का अज्ञान (अविद्या) है और कृपा का मूल कारण अर्थात्  भगवान का कृपालु … Read more

आचार्य हृदयम् – ८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – ७ अवतारिका (परिचय) इनके कारणों को बताया गया है। चूर्णिका – ८ इवट्रुक्कु मूलम् इरुवल्लरुळ् नल्विनैगळ् सामान्य व्याख्या भगवान के कृपा कटाक्ष (कृपा दृष्टि) जन्म के समय और जन्म (बिना कृपाकटाक्ष के) का कारण भी भगवान की कृपा ही है … Read more