श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका इस प्रकार, आरोही क्रम में शम और दम की प्राप्ति के फल की क्रमबद्ध प्राप्ति को समझाने के पश्चात, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक अवरोही क्रम में इन विषयों में से प्रत्येक के शाश्वत होने का कारण बताते हैं। सूत्रं … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका तत्पश्चात्, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक शम और दम प्राप्त करने पर होने वाले परिणामों का क्रम समझाते हैं। सूत्रं – ९७ इवै इरण्डुम् उण्डानाल् आचार्यन् कैपुगुरुम्; आचार्यन् कैपुगुन्दवाऱे तिरुमन्त्रम् कैपुगुरुम्; तिरुमन्त्रम् कैपुगुन्दवाऱे ईश्वरन् कैपुगुरुम्; ईश्वरन् कैपुगुन्दवाऱे “वैगुन्द मानगर् मट्रदु … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने यह समझाने के पश्चात यह स्पष्ट किया कि भगवान के प्रति इच्छा ही सभी श्रेष्ठ गुणों का मुख्य कारण है और सांसारिक विषयों से विरक्त होने के गुण का प्रमाण दिया। जब उनसे इसका कारण … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस सिद्धांत (भगवान के प्रति महान इच्छा जो उत्तम गुणों की ओर ले जाती है) के लिए शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सूत्रं – ९५ “मऱ्-पाल् मनम् सुऴिप्प”, “परमात्मनि तो रक्तः”, “कण्डु केट्टु उट्रु मोन्दु”। सरल … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं ९४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “क्या भगवान के प्रति ऐसी महान इच्छा भगवान की महानता के अधीन नहीं है? क्या शम (मानसिक संतुलन), दम (आत्मसंयम) आदि जैसे श्रेष्ठ आत्मगुण योग्यता को परिष्कृत करते‌ हैं?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी बताते हैं … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका यह समझाने के पश्चात कि मडल् आदि कर्म सिद्धोपाय (भगवान ही इसके स्थापित साधन हैं) के लिए बाधा नहीं हैं, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं कि ये सिद्धोपाय के समतुल्य हैं। सूत्रं – ९३ साध्य समानम्, विळम्बासहम् ऎन्ऱिऱे … Read more

श्री रामायण तनि श्लोकम् – १ – परिचय

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्री रंगदेशिकाय नमः पूरी श्रृंखला एम्पेरुमान (भगवान) ने अनेक अवतार लिए हैं,  जिनमें श्री राम अवतार विशेष रूप से अनेक लोगों को प्रिय है| आऴ्वारों एवं आचार्यों ने अपने कृतियों में श्री रामावतार का वैभव बताया है: तिरुवाईमोऴि (सहस्रागीति) 7.5.1 में रामावतार का गुणगान किया है: कऱ्‌पार् इराम … Read more

आचार्य हृदयम् – १५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः  श्रृंखला << आचार्य हृदयम् – १४ अवतारिका (परिचय) प्रश्न यह है कि, “जबकि भगवान गुणत्रय (सत्व,रज,तम) बंधक चेतनों को ध्यानपूर्वक शास्त्रों का प्रकटीकरण करते हैं, यदि वे उन बंधकों की रुचि अनुसार लक्ष्य और उपाय बतलाते हुए शास्त्रों का प्रकटीकरण करते हैं, तो क्या वे इस … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि “फिर भी क्या यह असाधारण कार्य [अपने शरीर को त्यागना] भगवान के लिए बाधा नहीं बनेगा जो सिद्धोपाय (तत्परता से उपलब्ध साधन) हैं जो स्वयं से किसी भी प्रयास को सहन नहीं करते हैं?” … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा जाता है कि, “ये सब मोह के कारण घटित हुए हैं; जो कुछ अज्ञान/मोह के कारण घटित होता है वह वांछित नहीं है। तो ये कैसे वांछित हैं?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक उत्तर देते हैं। … Read more