लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियां – निष्कर्ष

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमते वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य की श्रीसूक्ति << पूर्व अनुच्छेद पहले के विषय में हमने नम्पिळ्ळै के ईडु महाव्याख्यानम् से उनके रहस्योद्धघाटन का आनंद लिया है। तिरुवाय्मोऴि के लिए नम्पिळ्ळै और उनके ईडु व्याख्यानम् की महिमा अच्छी तरह से प्रस्तुत की है। नम्पिळ्ळै नञ्जीयर् के दिव्य करुणा … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १८१–रक्ष्य वर्गम् कुऱैवट्र देसमागैयाले रक्षकनुक्कु सम्पत्तु मिक्किरुक्कुम् इङ्गु। कैङ्कर्यत्तुक्कु विच्छेदमिल्लामैयाले सेष भूतनुक्कु सम्पत्तु मिक्किरुक्कुम् अङ्गु। भगवान इस संसार (भौतिक संसार) में जीवात्मा के उत्थान करके अपनी “रक्षकन” (रक्षक/उज्जीवित कर्ता) उपाधि स्थापित करने की खोज में हैं। जबकि असंख्य जीवात्माएँ … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १७१– निरपेक्षनान तान् कुऱैय निन्ऱु इवनुडैय कुऱैयैत् तीर्क्कुमाय्त्तु, तान् सापेक्षनाय् निन्ऱु इवनै निरपेक्षनाक्कुम्। सापेक्षन् – इच्छा सहित/आशापूर्ण निरपेक्षन् -इच्छा रहित/आशा विहीन  अपनी अहैतुक/निर्हेतुक कृपा से, जीवात्माओं को पार लगाने के लिए, वे (भगवान) अवतरित होकर जीवत्माओं की … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १७

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १६१– प्रणवार्थमुम् नमच्छब्दार्थमुम् व्यापकत्वमुम् अव्यापक्त्वमुम् अल्लाद व्यापक मन्दिरङ्गळिलुम् उण्डु। “ओ३म (ॐ)” का अर्थ है जीवात्मा भगवान का दास है। “नमः” का अर्थ है “मैं स्वयं का दास नहीं हूँ”। इनका और भगवान की सर्वव्यापकता का अन्य व्यापक … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियां – १६

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १५१ – शेषिक्कु अतिसयत्तै विळैक्कैये शेषवस्तुवुक्कु स्वरूपम्। शेषी-स्वामी/आदि, शेष वस्तु – दास/द्वितीय। एम्पेरुमान् सर्वोच्च स्वामी परमपिता परमात्मा हैं और जीवात्मा नित्य दास है। जीवात्मा की स्वाभाविक क्रिया भगवान की स्तुति करना है अनुवादक टिप्पणी – एम्पेरुमानार् … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ – १५

 श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १४१-तामस पुरुषर्गळोट्टै सहवासम् सर्वेश्वरनुक्कु त्याग हेतु। सत्वनिष्टरोट्टै सहवासम् ईश्वरनुक्कु स्वीकार हेतु। तामसिक (अज्ञानी) जनों का संग करने के कारण एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) ही हमें भटका देते हैं। और सात्विक (ज्ञानवान श्रीवैष्णव) जनों का संग करने से एम्पेरुमान् … Read more

   लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्री सूक्तियां – १४

   श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमते वरवरमुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद १३१-इवर्गळैत् तनित्तनिये पट्रिनार्क्कु स्वरूप विनाशमिऱे मिदुनमे उपदेश्यमेन्ऱिरुप्पार्क्कु स्वरूप उज्जीवनमिऱे। जो व्यक्ति पिराट्टि (श्री महालक्ष्मी जी) और पेरुमाळ् (श्रीमन्नारायण) को पृथक-पृथक जानता है उसके प्राकृतिक स्वरूप (श्रीमन्नारायण के दास के रूप में पहचान) का विनाश हो जाएगा। जो व्यक्ति दिव्य … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १३

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद 121) शिष्यनुक्कु आचार्यानुवर्त्तनम् पण्णलावदु अवन् देह परिग्रहम् पण्णियुरुक्किर नाळिलेयिरे।पिन्भुळ्ळत्तेल्लाम् भगवदनुभवत्तिले अन्यविक्कुमिरे इरुवर्कुम् ।                         अनुवर्त्तनम् – आज्ञा पालन और सेवा करना, पिन्बु – परमपद पहुँचकर इस … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १२

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद   १११) मुक्तात्मानुक्कु लीलाविभूति तदीयत्वाकारत्ताले उद्देश्यमाग निन्रतिरे मुक्तात्मा के लिए, लीलाविभूति (यह भौतिक संसार) भोग्य वस्तु ही है क्योंकि यह भी भगवान् की ही सम्पत्ति है । यह हमने १०५ वें  सूत्र मे विस्तारपूर्वक देखा है … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ११

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद १०१) पिरिविल् गुणानुसन्धानम् पण्णि दरिक्कलाम् । अवन् सन्निदियिल् अवनैयोऴिय अरैक्षणमुम् मुकम् मारियिरुक्कुमतुक्कु मेर्पट्ट मुडिविल्लै भगवद्विप्रलम्भ भाव मे, हमे भगवान् के दिव्य कल्याण गुणों का चिन्तन और अनुसन्धान करना चाहिये । परन्तु उनके समक्ष यानि उनके सङ्ग मे, … Read more