श्रीवचन भूषण – सूत्रं १ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला पूर्व अवतारिका  एक प्रमाता (शिक्षक को ग्तान प्रस्तुत करता हैं) प्रमाण (ज्ञान का स्रोत) के साथ हीं प्रमेय (ज्ञान का लक्ष्य) निर्धारित करता हैं। ऐसे प्रमाण प्रत्यक्षं से प्रारम्भ कर ८ प्रकार के हैं।  प्रत्यक्षम् एकं चार्वाकाः कणाद सुगदौ पुनः।अनुमानञ्च तच्छात … Read more

श्रीवचन भूषण – अवतारिका – भाग ३ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम: पूरी शृंखला पूर्व​ अब हम अवतारिका के अंतिम भाग को जारी रखेंगे। इस खंड में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी समझाते हैं कि श्रीवचन भूषण द्वय महा मन्त्र को विस्तार से समझाते हैं जैसे कि श्रीसहस्रगीति में किया गया हैं।  श्रीशठकोप स्वामीजी श्रीसहस्रगीति जिसे दीर्घ … Read more

श्रीवचन भूषण – अवतारिका – भाग २ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला पूर्व अवतारिका के अगले भाग में हम अब आगे बड़ते हैं। इस अवतारिका के खंड में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी इस प्रबन्ध के लिये दो प्रकार के वर्गीकरण (६ खंड और ९ खंड) बताते हैं।  श्रीपिळ्ळैलोकाचार्यर्, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी – श्रीपेरुम्बुतूर् पहिले हम देखेंगे … Read more

श्रीवचन भूषण – अवतारिका – भाग १ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम: श्रीवचन भूषण​ << तनियन् तिरुमन्त्र सम्पूर्ण वेद का सार हैं। तिरुमन्त्र में ३ शब्द ३ सिद्धान्तों को प्रकाशित करता हैं (अनन्यार्ह शेषत्व – केवल भगवान के शेष होकर रहना, अनन्य शरणत्व – उन्हीं के सर्वविध शरण रहना, अनन्य भोग्यत्व – भगवान के … Read more

श्रीवचन भूषण – तनियन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम: श्रीवचन भूषण​ श्रीवचन भूषण का पाठ / अध्ययन करने से पूर्व निम्म तनियन का पाठ करने कि प्रथा हैं। हम अपने गौरवशाली आचार्य और सभी के हित के लिये उनके साहित्यिक योगदान को समझने हेतु उन्हें संक्षेप में देखेंगे। पहिले श्रीशैलेश दयापात्रं … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९५ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का श्रीवैकुण्ठ जाने के लिये आग्रह  श्रीवानमामलै जीयर् स्वामीजी के कुछ दिनों के जाने के पश्चात श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को पुनः प्राप्य भूमि (श्रीवैकुंठ) कि ओर स्नेह हुआ, त्याज्यभूमि (संसार) के प्रति घृणा हुआ और भगवान के अनुभव के अभाव … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ९० श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर श्रीरङ्गम् लौटते हैं  श्रीवरवरमुनि स्वामीजी तिरुमालिरुञ्चोलै से प्रस्थान कर कृपाकर उस स्थान पर पहुँचते हैं जहां तिरुमालिरुञ्चोलै के स्वामी नित्य रात्री को शयन करते हैं, श्रीरङ्गम् [श्रीरङ्गम् वह दिव्य स्थान हैं जहां सभी दिव्यदेश के भगवान हर रात्री … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ८३ कन्दाडै अण्णन् तिरुमला के लिये प्रस्थान करते हैं  श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी पर कृपाकर अनुग्रह किये और उनसे पूछे “क्या आप श्रीमान को श्रीवेङ्कटेश भगवान का मङ्गळाशासन् नहीं करना चाहिये?” अप्पिळ्ळै जो निकट में थे ने उत्तर दिया “क्या कन्दाडै … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ५९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ५८ उन श्रीवैष्णवों को सुधारना जो उनके मध्य में शत्रुता पाल रहे हैं  दो श्रीवैष्णव आपस में अहंकार के कारण बहस कर रहे थे। उसी स्थान पर दो कुत्ते भी झगड़ रहे थे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने यह देखा और उन कुत्तों … Read more

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ५६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् << भाग ५५ अप्पिळ्ळै (श्रीप्रणतार्तिहारी स्वामीजी) और अप्पिळ्ळार् (श्रीरामानुज स्वामीजी) श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण होते हैं  सात गोत्रों के नियम को सम्पन्न कर एऱुम्बियप्पा एऱुम्बि लौटने का निर्णय करते हैं परन्तु पूर्वसंकेत शुभ नहीं थे। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के समक्ष … Read more