लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १८
श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १७१– निरपेक्षनान तान् कुऱैय निन्ऱु इवनुडैय कुऱैयैत् तीर्क्कुमाय्त्तु, तान् सापेक्षनाय् निन्ऱु इवनै निरपेक्षनाक्कुम्। सापेक्षन् – इच्छा सहित/आशापूर्ण निरपेक्षन् -इच्छा रहित/आशा विहीन अपनी अहैतुक/निर्हेतुक कृपा से, जीवात्माओं को पार लगाने के लिए, वे (भगवान) अवतरित होकर जीवत्माओं की … Read more