लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य श्रीसूक्तियाँ – १८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम:। श्रीमते रामानुजाय नम:। श्रीमद् वरवरमुनये नमः। श्रीवानाचलमहामुनये नमः। लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियाँ << पूर्व अनुच्छेद १७१– निरपेक्षनान तान् कुऱैय निन्ऱु इवनुडैय कुऱैयैत् तीर्क्कुमाय्त्तु, तान् सापेक्षनाय् निन्ऱु इवनै निरपेक्षनाक्कुम्। सापेक्षन् – इच्छा सहित/आशापूर्ण निरपेक्षन् -इच्छा रहित/आशा विहीन  अपनी अहैतुक/निर्हेतुक कृपा से, जीवात्माओं को पार लगाने के लिए, वे (भगवान) अवतरित होकर जीवत्माओं की … Read more

४००० दिव्यप्रबंधम्

श्री: श्रीमते शठकोपाये नमः श्रीमते रामानुजाये नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीमन्नारायण ने कुछ चुनिंदे आत्माओं को दैविक ज्ञान और उसके प्रति असीम भक्ति प्रदान कर अनुग्रहित किया, और उन्हें आऴ्वार बनाया। इन आऴ्वारों ने श्रीमन्नारायण की स्तुति में क‌ई दिव्य स्तोत्रों (जिसे तमिऴ् में पासुरम् कहते हैं) की रचना की‌। ये पासुरम् कुल मिलाकर लगभग ४००० … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १४ – कलिङ्ग नर्दनम् (कालियदमन)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << धेनुकासुर का वध (उद्धार) यमुना नदी के तट पर एक कालिय/कलिङ्ग नामक एक सर्प अपने परिवार के साथ रहता था। वह दुष्ट निरन्तर विष उगलकर तालाब को विषाक्त बना दिया ताकि कोई भी वहां न आ सके। यदि कोई वहां जाता … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार- १३ – धेनुकासुर का वध (उद्धार)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << ब्रह्मा के अभिमान को दूर करना श्रीकृष्ण, बलराम अन्य गोपाल सखाओं के साथ वन में प्रसन्नचित्त  होकर खेल रहे थे। तभी सभी ग्वाल-बालों ने बताया कि तालवन (ताड़ के वृक्षों का समूह) नामक स्थान है जहां परिपक्व मीठे फल हैं। परन्तु … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १२ – ब्रह्मा के अभिमान को दूर करना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << अघासुर वध (उद्धार) सभी देवताओं ने श्रीकृष्ण के द्वारा अघासुर का वध हो जाने के पश्चात् (श्रीकृष्ण की) स्तुति की। यह सुनकर ब्रह्मा शीघ्र वहां आए, सब देखकर आश्चर्यचकित हो गये। ब्रह्मा जो भगवान के प्रति समर्पित थे अब तमोगुण प्रधान … Read more

अनध्ययन काल

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः अध्ययन याने पढ़ना/सीखना/दोहराना। वेदम को आचार्य की सन्निधि में उनके द्वारा सुनकर दोहराया जाता है। वेद मंत्रों को भी नित्यानुसन्धान के अंतर्गत पारायण किया जाता है। अनध्ययन याने पढ़ाई को रोकना। वर्ष के कुछ दिनों में वेदम का पाठ नहीं होता है। उस … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ११ – अघासुर वध (उद्धार)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << दधिपाण्डन द्वारा आशीर्वाद की प्राप्ति (मोक्ष प्राप्ति) जब श्रीकृष्ण लगभग पांच वर्ष के हुए, तब ग्वाल-बालों के साथ गैय्या-बछड़ों को लेकर ध्यानपूर्वक वन को जाते थे और वृन्दावन में हरियाली से आच्छादित वन हैं, वे वन में हंसते खेलते, इधर-उधर दौड़ते, … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १० – दधिपाण्डन द्वारा आशीर्वाद की प्राप्ति (मोक्ष प्राप्ति)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << वृन्दावन की ओर प्रस्थान, बहुत से असुरों का वध श्रीकृष्णावतार की लीलाओं में, बहुत मनोहर अनुभूति और अद्भुत सिद्धांतों का वर्णन हुआ है। उन लीलाओं में एक अद्भुत लीला जिसमें श्रीकृष्ण एक कुम्हार और उसके (दधि रखने के) पात्र को कैसे … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ९ – वृन्दावन की ओर प्रस्थान, बहुत से असुरों का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << यमलार्जुन को श्राप से मुक्ति गोकुल में निरन्तर उत्पात होने के कारण नन्दगोप और मन्त्रकुशल वृद्ध गोपों की मन्त्रों से गोकुल से वृन्दावन जाने का निश्चय किया। वे अनगिनत बैलगाड़ियों के द्वारा यात्रा करके वृन्दावन पहुँचे। वृन्दावन हरे भरे विशाल काननों … Read more

कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ८ – यमलार्जुन को श्राप से मुक्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः श्रृंखला << माखन चोरी करना और पकड़े जाना इससे पहले की लीला में हमने अनुभव किया कि भगवान कृष्ण कैसे माता यशोदा के बंधन में बंध जाते हैं। जब बालकृष्ण को माता यशोदा ऊखल के साथ बांधकर अपने दधि मंथनादि कार्यों में व्यस्त … Read more