प्रपन्नामृत – अध्याय २४

प्रपन्नामृत – अध्याय २४

🍁यतीन्द्र श्रीरामानुजाचार्यजी के विषप्रदान🍁

🔹रामानुजाचार्य गद्यत्रय तथा भगवदाराधन विधी की रचना कर “श्रीमन्नारायण ही परतत्व हैं” इस बात को सिद्ध करदिये।

🔹रामानुजाचार्य का यह शासन कुछ अर्चकोंको यह बन्धन सा प्रतीत होने लगा।

🔹उनमेसे प्रधान अर्चकने किसी लोभी ब्राह्मण को रामानुजाचार्य को विष देनेको कहा।

🔹लोभी ब्राह्मण की पत्नी ने अपनी इच्छा विरुद्ध विषमिश्रित भोजन बनाया।

🔹रामानुजाचार्य को भोजन की थाली देते समय यह भोजन विषमिश्रित होने का संकेत दिया।

🔹संकेत समझकर रामानुजाचार्य ने वह भोजन त्याग दिया। और कई दिनोंतक उपवास किया।

🔹एक दिन गोष्ठीपूर्ण स्वामीजी श्रीरंगम् आये तो रामानुजाचार्य तप्त रेतिमें साष्टांग किये।

🔹यह देखकर रामानुजाचार्य के एक शिष्य नें तप्त रोतिमें लेटकर रामानुजाचार्य को अपने शरीर पर चढालिया और रामानुजाचार्य के शरीर की रक्षा की।

🔹यह निष्ठा देखकर गोष्ठीपुर्ण स्वामीजीने रामानुजाचार्य को उसी ब्राह्मण से बनाया हुवा प्रसाद पानेकी आज्ञा की।

🔹एकबार रामानुजाचार्य अकेले ही रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिये पधारे।

🔹प्रधान अर्चकनें विषमिश्रित तीर्थ दिया।

🔹सबकुछ जानते हुये ही भगवानपर सब भार छोडकर रामानुजाचार्य ने तीर्थ पी लिया।

🔹 परंतु भगवान की कृपा से वह विष प्रभाव रहित होगया।

🔹 इस तरह अर्चकोंने यतिराज को मारनेके अनेक प्रयत्न किये पर सब व्यर्थ होगये।

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