श्रीवचन भूषण – सूत्रं ४६

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श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने समझाया कि यद्यपि तीन प्रकार के व्यक्तित्वों में ज्ञान, ज्ञानाधिकार और भक्ति पारवश्यम जैसे तीन प्रकार के विषयों में संलग्नता होती है, लेकिन उनमें से एक विषय को उसके वर्चस्व के कारण प्रपत्ती के हेतु के रूप में पहचाना जाता है; अब वह दयापूर्वक इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं कि “क्या कोई अस्तित्व  है जिसके पास ये तीनों विषय हैं?”

सूत्रं – ४६ 

“ऎन्नान् सॆय्गेन्” ऎन्गिऱ इडत्तिल् इम्मून्ऱुम् उण्डु।

सरल अनुवाद

जहाँ आऴ्वार् श्रीसहस्रगीति (तिरुवाय्मॊऴि) ५.८.३  में कहते हैं “ऎन्नान् सॆय्गेन्”, ये सभी तीनों विषय उपस्थित हैं।

व्याख्या: 

ऎन्नान् …

अर्थात,

  • क्योंकि भगवान आऴ्वारों की पीड़ा को देखकर अपनी दया नहीं दिखाते हैं, आऴ्वार् सोचते हैं कि “भगवान कदाचित मुझसे कुछ साधन में संलग्न होने की अपेक्षा कर रहे हैं क्योंकि मैं अज्ञानी हूँ कि मेरे पास अन्य उपाय में संलग्न होने की कोई योग्यता नहीं है”, और पूछते हैं “ऎन्नान् सॆय्गेन्” (मैं, जो अज्ञानी हूँ, क्या करूँ?)”
  • भगवान कहते हैं, “हमने आपको स्पष्ट ज्ञान दिया है” और आऴ्वारों ने उत्तर दिया, “आपने मुझे जो ज्ञान दिया है, उससे मैं पूरे रूप से आप पर निर्भर होने के अपने वास्तविक स्वभाव को समझ गया हूँ और इसलिए अन्य उपाय में संलग्न होना अनुचित है। अत: मैं क्या करूँ?”
  • तब आऴ्वार् सोचते हैं कि “भले ही यह [अन्य उपाय] वास्तविक प्रकृति के लिए अनुपयुक्त है, यदि यह आपको प्राप्त कराता है तो मैं इसमें संलग्न हो सकता हूँ, अगर आपने उसका ज्ञान दिया होता; लेकिन आपने भक्तिरूपापन्न ज्ञान (परिपक्व भक्ति के रूप में ज्ञान) दिया है। मैं भक्ति से अभिभूत हूँ जिसके कारण मैं कोई भी उपाय करने में असमर्थ हूँ। अतः अत्यधिक भक्ति के कारण मुझे क्या करना चाहिए?”

इस प्रकार, चूँकि आऴ्वार् सभी तीन विषयों को प्रकट करते हैं, यह समझाया गया है कि उनके पास ये सभी हैं। अत: इसे यहाँ देखा जा सकता है।

अडियेन् केशव रामानुज दास 

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/02/12/srivachana-bhushanam-suthram-46-english/

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