श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
<< पूर्व
अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इन तीनों विषयों के कारण को समझाते हैं अर्थात अज्ञान, आदि।
सूत्रं – ४५
इम्मून्ऱुम् मून्ऱु तत्वत्तैयुम् पट्रि वरुम्।
सरल अनुवाद
ये तीन विषय तीन अस्तित्त्व (अचित, चित्त और ईश्वर) के आधार पर बनते हैं।
व्याख्या
इम्मून्ऱुम् …
मून्ऱु तत्वत्तैयुम् पट्रि वरुम्
साधन में संलग्न होने में जो अज्ञान और अशक्ति है, वह कर्म (क्रिया-प्रतिक्रिया) पर आधारित अचित सम्बन्ध (अचेतन पदार्थ के साथ संबंध) के कारण है; इसलिए, अज्ञान अचित तत्त्वम् (अचेतन इकाई – पदार्थ) के आधार पर होता है।
ज्ञान में पूर्णता जो अन्य साधन को पूर्ण रूप से त्यागने का कारण है, यह जानते हुए कि वे स्वयं के वास्तविक स्वरूप के विरोधाभासी हैं, आत्म स्वरूपम की गहराई से प्राप्ति के कारण है, जिसे [तिरुमंत्रम/अष्टाक्षरी के] मध्य शब्द (नम:) में समझाया गया है]; इसलिए ज्ञानाधिकार चित्त तत्त्वम् (संवेदनशील इकाई – आत्मा) के आधार पर होता है।
भक्ति का विकास जो क्षमताओं को बलहीन करता है और किसी भी वस्तु का ठीक से अभ्यास करना कठिन बनाता है, भगवान के विशिष्ट दिव्य रूप के कारण होता है जैसा कि श्रीसहस्रगीति (तिरुवाय्मॊऴि) ५.३.४ में कहा गया है “कादल् कडल् पुरैय विळैवित्त कारमर्मेनि” (भगवान का दिव्य श्यामल रूप जिसने उनके प्रति प्रेम को सागर जितना बढ़ा दिया); इसलिए अत्यधिक भक्ति भगवत तत्त्वम् (भगवान) पर आधारित होती है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/02/11/srivachana-bhushanam-suthram-45-english/
संगृहीत- https://granthams.koyil.org/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org