श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
अब श्रीरङ्गनाथ भगवान के विषय में घटनायें
श्रीरङ्गनाथ भगवान ज्योतिषकुड़ी को छोड़ तिरुमालिरुज्चोलै दिव्यदेश पहुँचे जिसे श्रीरङ्गम् के समान माना गया हैं। श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी से बिछुड़ने के दु:ख को भूलकर श्रीरङ्गनाथ भगवान यह तथ्य के साथ तिरुमालिरुज्चोलै में निवास किया की यह श्रीरङ्गम् के जैसे बगीचे से घिरा हुआ हैं। श्रीकुरेश स्वामीजी (भगवद श्रीरामानुज स्वामीजी के शिष्य) अपने सुन्दरभाहु स्तवम के १०३वें श्लोकम में कळ्ळऴगर, जो तिरुमालिरुज्चोलै में भगवान हैं के विषय पर कहते हैं
शिखरिषु विपिनेष्वप्यापगास्वच्छतोयास्वनुभवसि रसज्ञो दण्डकारण्यवासावन्।
तदिह तदनुभूतौ साभिलाषोऽद्य राम! श्रयसि वनगिरीन्द्रं सुन्दरीभूय भूयः॥
(हे श्रीराम! आप विशेषज्ञ होने के नाते, आप अपने दण्डकारण्य के यात्रा के समय बड़ी करुणा से पहाड़ी क्षेत्र जैसे चित्रकूट और मण्दाकिनी नदी के समीप जंगलों में जिसका जल काँच कि तरह साफ हैं वहाँ विराजमान रहे। आप ने जो स्वाद को अर्जित किया जहां आप रहते थे आपने अपने हृदय में यह निर्णय किया कि आपको यह अनुभव को पूनः दोहराना हैं और इसलिये आपने तिरुमालिरुज्चोलै को अपना निवास स्थाना बनाया)।
जैसे इसमे बताया गया हैं कि श्रीरङ्गनाथ भगवान ने वन प्रदेश में निवास करने कि इच्छा को प्रगट किया और एक वर्ष तक उस स्थान में आराम किया जो जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ हैं। उन्होंने अऴगियमणवाळन किणरु(श्रीरङ्गनाथ भगवान द्वारा निर्मित कुंआ) के लिये एक तण्णीर्पन्दल् (प्यासे जनों को पीने के लिये प्याऊ का छत) बनाया क्योंकि वें धार्मिकन (उदार व्यक्ति) थे। तत्पश्चात जैसे श्रीकुलशेखर स्वामीजी के प्रति उल्लेख किया गया हैं “कोल्लि कावलन कूडल नायगन कोऴिक्कोन कुलसेकरन” (कोल्लि क्षेत्र के रक्षक, कूडल क्षेत्र के नायक और कोऴि क्षेत्र के मुखिया), श्रीरङ्गनाथ भगवान उन क्षेत्रों में निवास करने कि इच्छा प्रगट किये जहां श्रीकुलशेखर स्वामीजी राज्य करते थे। तिरुमालिरुज्चोलै से वें पश्चिम कि ओर निकल पड़े, राह में कुछ स्थान पर निवास किया और अन्त में कोऴिक्कोडु पहुँच गये।
जैसे “सुडर्कोळ सोदियै देवरुम मुनिवरुं तोडर ” (भगवान के पीछे नित्यसूरी और मुक्तात्मा भी आगये) में बताया गया हैं कि अन्य दिव्यदेश के भगवान और श्रीशठकोप स्वामीजी भी उसी स्थान पर पहुंचे [मुसलमान ताकत के आक्रमण के परिणाम स्वरूप]। उन्होंने उनकी भी रक्षा किये [सभी भक्त जन जो अन्य कई दिव्यदेशों से विग्रह लाये]। उन्होंने श्रीशठकोप स्वामीजी को अपने दिव्य सिंहासम [नक्काशीदार शेरों द्वारा निर्मित शाही आसन] में एक स्थान प्रदान किया और उनके प्रति बड़ी करुणा से देखते रहे। तत्पश्चात उन्होंने आलवार सहित एक स्थान जिसका नाम तेनैक्किडम्बै (तिरुक्कणाम्बि) में कुछ समय निवास किया और तत्पश्चात आऴवार जो उनके संग जाना चाहते थे उनको वहाँ छोड़ कर चले गये। वें पुंगनूर के मार्ग से तिरुनारायणपुरम पहुंच कुछ समय वहाँ निवास किया और तिरुवेङ्गडम (तिरुमला) पहुंचे जिसे आऴवार “तिलदमुलगुक्काय निन्ऱ ” (पूरे संसार के लिए एक सजावटी स्थान)।
श्रीरङ्गनाथ भगवान का तिरुमला में निवास करना
जैसे श्रीरामायण के अयोध्या काण्ड के ५६-३८ में कहा गया हैं
सुरम्य्मासाद्य तु चित्रकूतटं नदीं च तां माल्यवति सुतीर्थाम्।
ननन्द हृष्टो मृगपक्षिजुष्टां जहौ च दुःखं पुरविप्रवासात् ॥
(सुन्दर चित्रकूट के पर्वत के उपर और मन्दाकिनी नदी के ढलान के पास पहुँच कर प्रसन्न एवं आनंदपूर्ण हुए, अच्छे वंश के साथ और पक्षियों और जानवरो (सीता, राम और लक्ष्मण) द्वारा अक्सर अयोध्या के शहर से उनके निर्वासन के कारण हुई पीड़ा को दूर किया, श्रीरङ्गनाथ भगवान को तिरुमला पहुँच कर बड़ा आरामदायक हुआ जिसे श्रीभक्तिसार स्वामीजी ने अपने नान्मुगन तिरुवन्दादि के ४७वें पाशुर नन्मणिवनण्णनूर्…” (सर्वेश्वर के निवास करने का स्थान जिनका रंग मणि के समान हैं) में प्रशंसा किये हैं। जैसे श्रीयोगीवाहन स्वामीजी अपने अमलनादिपिरान के तीसरे पाशुर में कहे “मन्दि पाय वड वेङ्गड मा मलै वानवर्गळ सन्दिसेय्य निन्ऱान अरङ्ग्त्तरविन अणैयान् …” (तिरुमला के पर्वतों में उत्तर दिशा स्थित, श्रीरङ्गम् में भगवान जो शेष शैय्या पर शयन किये हैं खड़े हो गये ताकि सभी नित्यसूरी उनकी पुष्पों से सेवा कर सके), क्योंकि यह दोनों (अरङ्गनाथम और तिरुमला) स्वरूप समान हैं, श्रीरङ्गनाथ भगवान बहुत दिनों तक तिरुमला में निवास कर मंदिर के दिव्य उत्सवों का आनन्द लिया।
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/07/30/yathindhra-pravana-prabhavam-15-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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