श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरी श्रृंखला

<< पूर्व

अवतारिका

जब उनसे पूछा जाता है कि, “अन्य अनुष्ठानों के विपरीत जो उपाय और उपेय के लिए निर्धारित हैं, यह [भगवान के लिए शरीर त्यागना] शास्त्रों में उपाय के रूप में निर्धारित किए जाने के कारण, और अनन्य साधन (जिसे अन्य कोई साधन का अनुसरण नहीं करना चाहिए) के लिए यह कार्य जो नहीं किया जाना चाहिए, और जो प्रेम के कारण घटित हुआ है, और इसलिए सुलभता से छोड़ दिया नहीं जा सकता, फिर भी, क्या यह उपाय का अंग नहीं होगा?” श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक उत्तर देते हैं।

सूत्रं – ८९

अनुष्ठानमुम् अननुष्ठानमुम् उपाय कोटियिल् अन्वयियादु।

सरल अनुवाद 

विहित तथा निषिद्ध दोनों प्रकार के कार्यों में संलग्न होना उपाय का अंग नहीं बनेगा।

व्याख्या

अनुष्ठानमुम् …

अर्थात् – जैसे कि अपनी योग्यता आदि का त्याग करना तथा भगवान के प्रति प्रेम रखना आदि विहित कर्म उपाय तथा उपेय के लिए योग्यता के अंग हैं, उन्हें उपाय का अंग नहीं माना जाएगा। उसी प्रकार, जैसे कि प्रपन्नों के लिए निषिद्ध कर्म जैसे कि भगवान के लिए शरीर का त्याग करना उपाय के रूप में न करके प्रेम से किया जाता है, वे उपाय के अंग नहीं होंगे, अपितु उपेय (कैंकर्य) के अंग होंगे। यद्यपि ऐसे कर्म शास्त्र में उपाय के रूप में सुप्रतिष्ठित हैं फिर भी वे उपाय तभी बनेंगे जब उन्हें उपाय के भाव से किया जाए। यदि ऐसा न हो तो, एक प्रपन्न का तीर्थस्थान में निवास करना आदि जैसे कार्य जो वह उपाय के बदले उसे उपेय (कैङ्कर्यम्) के रूप में मानकर करता है, वे सब कार्य भी उपाय ही माने जाते।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/15/srivachana-bhushanam-suthram-89-english/

संगृहीत- https://granthams.koyil.org/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment