विरोधी परिहारंगल ( बाधाओं का निष्कासन )

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्रीवानाचलमहामुनये नमः  श्रीवादिभीकरमहागुरुवे नमः

विरोधी परिहारंगल ( बाधाओं का निष्कासन )

जगदाचार्य श्रीरामानुज स्वामीजी को (रामानुज नुट्रन्दादी – २५ ) “ कारेय करूणै इरामानुज ” कहकर उनका वैभव प्रकट किया गया है जिसका अर्थ है बादल की तरह अत्यन्त दयालु ( जो सभी पर वर्षा करते हुये कृपा करता है ) और ” दयैकसिन्धो ” ( यो नित्यमच्युत – तनियन में ) याने करुणा के सागर । श्रीरामानुज स्वामीजी आदि शेष के अवतार है और श्रीभाष्यकार, यतिराज, येम्पुरूमानार जैसे अनेक नामों से पहचाना जाता है ।

1श्री रामानुज स्वामीजी – तिरुमला

श्री वरवरमुनि स्वामीजी उपदेश रत्नमाला के ३५ वें पाशूर में रामानुज स्वामीजी के वैभव का वर्णन करते है ।

ओराण वलियाय, उपदेशित्तार मुन्नोर्
एरार् एतिराजर् इन्नरुलाल्
पारुलगिल , आशै उडैयोर्क्केल्लाम आरियर्काल् कुरुम् एन्रू
पेशि वरम् परुत्तार पिन् ॥ ३७ ॥

रामानुज स्वामीजी के पहिले आचार्य जन दिव्य उपदेश देने में बहुत चयनात्मक थे । शिष्यों की पूर्ण रूप से परीक्षा करते और योग्य अधिकारियों को ही उपदेश देते थे । रामानुज स्वामीजी निर्हेतुक कृपा करते हुये जो भी इच्छा प्रकट करते उन्हे दिव्य उपदेश देते थे । उन्होने अनेक आचार्यों को नियुक्त किया और दिव्य उपदेश देने के लिये आज्ञा की । जीवात्माओं की ओर कृपा भाव दर्शाने के कारण रामानुज स्वामीजी को “ कृपा मात्र प्रसन्नाचार्य ” कहा गया है । रामानुज स्वामीजी के समय से श्रीवैष्णव सम्प्रदाय को रामानुज सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है ।

रामानुज स्वामीजी के असंख्य शिष्य थे । ७४ आचार्य पीठों की स्थापना की, १२००० गृहस्थ, ७०० सन्यासी और हजारों श्रीवैष्णव ( पुरुष और महिलायें जो पूर्ण रूप से उनके शरणागत होकर रहते थे ) उनके समय में थे । उनके विशाल हृदय से श्रीवैष्णव सम्प्रदाय को अपनानेवाले इच्छुक पुरुष और महिलाओं को सभी बाधाओं से मुक्त कर दिया । इस संसार में दुःखी चेतनों को देखते हुये स्वामीजी ने निर्णय किया की जो कोई भी रुचि दिखाता है उन्हे पूर्ण रूप से मार्गदर्शन करना चाहिये । सभी संसारी जीवों के उद्धार हेतु उन्होने दिव्य आदेश दिया, जिससे “ रामानुजार्य दिव्याज्ञा वर्धताम अभिवर्धताम ” हो सके ।

रामानुज स्वामीजी ने अंतिम समय में अपने शिष्यों को व्यक्तिगत रूप से और सामूहीक रूप से अनेक विशेष उपदेश दिया जिसे “ चरम सन्देश ” कहते है । ६००० पड़ी गुरूपरम्परा प्रभावम, वार्तामाला, प्रपन्नामृतम जैसे अनेक ग्रन्थो के रूप में संग्रहीत किया गया है, इनके अलावा वंगी पुरत्तू नम्बी को व्यक्तिगत रूप से उपदेश दिया जिसे “ विरोधि परिहार ” नामक ग्रन्थ के रूप में संग्रहित किया गया है, विरोधी याने बाधायेँ, परिहार याने निष्कासन । इस ग्रन्थ में ८३ वाक्य है और वंगी पुरत्तू नम्बी ने रामानुज स्वामीजी से प्राप्त उपदेश द्वारा इस पर व्याख्या की है । हर एक वाक्य सिद्धान्त और व्यवहार पर आधारित है और इसमें आनेवाली कठिनाइयों को वंगी परत्तु नम्बी की व्याख्या में विस्तार रूप से विवरण किया गया है ।

2रामानुज स्वामीजी – वंगी पुरुत्तु नम्बी

श्रीवैष्णवों के लिये यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इसमें हर दिन श्रीवैष्णवों को कैसी चुनोतियों का सामना करना पड़ता है इसे विस्तार रूप से उल्लेख किया गया है । अपने कार्य करते समय हम लोगों को अनेक दुविधायेँ आती है, यह ग्रन्थ सब प्रकार की दुविधाओं को सामना करने के लिये हमारा आचरण और व्यवहार की रूप रेखाओं को दर्शाता है ।

श्री उ.वे.रामानुजम स्वामी ने तमिल में व्याख्या की है, उसके आधार पर श्रीमान सारथी तोताद्रीजी ने अँग्रेजी में व्याख्या की है । अँग्रेजी व्याख्या को आधार बनाकर हिन्दी में हम लोग इसका अध्ययन और अनुभव करेगें ।

गोदम्बाजी तिरुप्पावै में कहती है आपकी सेवा करते समय बाधाओं को आप ही मिटायेगें । भगवान को कहती है, “उनक्कै नामलशेय्वोम मत्तै नकांमंगल मातेलोरेम्बावाय्” कृपा कीजिये जिससे सिर्फ आपकी प्रसन्नता के लिये सेवा करेगें (भगवान की सेवा करते समय अपनी प्रसन्नता की झलक भी नहीं आना चाहिये )। हमारे हर दिन के व्यवहार में आनेवाली दुविधाओं का सामना उचित रूप से करते हुये भगवान की प्रसन्नता के लिये सेवा करने की इच्छा को पूर्ण करने में सफल होगें ।

आडियेन
श्रीराम रामानुजदास श्रीवैष्णवदास

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7 thoughts on “विरोधी परिहारंगल ( बाधाओं का निष्कासन )”

  1. Dear Swamy,

    Great work. One small corrrection. In the pAsuram from upadEsa rathnamAlai it should be

    ओराण वलियाय, उपदेशित्तार मुन्नोर्
    एरार् एतिराजर् इन्नरुलाल्
    पारुलगिल , आशै उडैयोर्क्केल्लाम आरियर्काल् कुरुम् एन्रू
    पेशि वरम् परुत्तार पिन् ॥ ३७ ॥

    You have missed आरियर्काल्.
    adiyEn sudharsana rAmAnuja dAsan

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    • आचार्य कृपा

      अडियेन
      श्रीराम रामानुजदास श्रीवैष्णवदास

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